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________________ गणितात्मक प्रणाली १४३३ प्रथम समयवर्ती सबसे जघन्य परिणामकी विशुद्धि अधःप्रवृत्तकरणके अन्तिम समय सम्बन्धी अन्तिम खण्डकी उत्कृष्ट विशुद्धिसे यद्यपि अनन्तगुणे अविभाग प्रतिच्छेदोंको लिये हुए है, तथापि अपूर्वकरणके अन्य परिणामों की विशुद्धि से स्तोक 1 उससे प्रथम समयवर्ती उत्कृष्ट परिणाम विशुद्धि अनन्तगुणी है । उससे द्वितीय समयवर्ती जघन्य परिणाम विशुद्धि अनन्त गुणी है । कारण यह है कि प्रथम समय सम्बन्धी उत्कृष्ट विशुद्धिसे असंख्यात लोकमात्र षट्स्थानोंका अन्तराल 3 a 3 a आ + १ ५ a देकर वह द्वितीय समवर्ती जघन्य विशुद्धि उत्पन्न होती है। उससे उसी द्वितीय समयको उत्कृष्ट परिणाम विशुद्धि अनन्त गुणी है । इस तरह उत्कृष्टसे जघन्य और जघन्यसे उत्कृष्ट विशुद्धि स्थान अनन्त गुणे हैं । इस प्रकार सर्प गतिकी भाँति अपूर्वकरणके चरम समयवर्ती उत्कृष्ट परिणाम विशुद्धि पर्यन्त जघन्य और उत्कृष्ट विशुद्धिका अल्पबहुत्व है । अपूर्वकरण गुणस्थानके प्रथम भागमें निद्रा और प्रचलाके बन्धकी व्युच्छित्ति मनुष्य आयुके विद्यमान होते होती है । उपशम श्रेणिपर आरोहण करनेवाले अपूर्वकरणवाले जीवका प्रथम भागमें मरण नहीं होता है । यदि ऐसे मनुष्य उपशम श्रेणीपर आरोहण करते हैं तब वे नियमसे चारित्र मोहनीयका उपशम करते हैं। यदि क्षपक श्रेणिपर आरोहण करते हैं तो वे नियमसे चारित्रमोहनीयका क्षपण करते हैं । क्षपक श्रेणिमें सर्वत्र नियमसे मरण नहीं है । अनिवृत्तिकरण में परिणाम विशेषके अभावसे विशेष संदृष्टि नहीं है । इसका काल आ १ है । इसके कालके एक समय में वर्तमान त्रिकालवर्ती नाना जीव जैसे शरीरका आकार वर्ण, वय, अवगाहना, ज्ञानोपयोग आदिसे परस्परमें भेदको प्राप्त होते हैं, उस प्रकार विशुद्ध परिणामोंके द्वारा भेदको प्राप्त नहीं होते हैं । अनिवृत्तिकालके प्रथम समयसे लेकर प्रतिसमय वर्तमान सर्व जीव होन अधिक परिणामसे रहित समान विशुद्ध परिणामवाले होते हैं । वहाँ जो प्रति समय अनन्तगुणी अनन्तगुणी विशुद्धि लिये परिणाम होते हैं उनसे दूसरे समयमें होनेवाले परिणामोंकी विशुद्धि अविभाग प्रतिच्छेदोंकी अपेक्षा अनन्तगुणी है । अनिवृत्तिकरण परिणामवाले जीव विमलतर ध्यानरूपी अग्निकी ज्वालासे कर्मरूपी वनको जलाकर चारित्र मोहका उपशम अथवा क्षपण करते हैं । उपर्युक्त तीन करोंके निमित्तसे होनेवाले सत्त्वादि द्रव्य प्रदेश, प्रकृति, अनुभाग एवं स्थितिमें परिवर्तन की गणितीय प्रणालीके लिए यहाँसे लब्धिसारका अध्ययन प्रारम्भ करना चाहिए । सूक्ष्म साम्पराय गुणस्थानके विवरणमें हम नवीन प्रतीक निम्न प्रकार लेकर निरूपण कर सकते हैं । जघन्य वर्गणा एक गुणहानिमें स्पर्द्धक नानागुणहानि Jain Education International अनन्त अपकर्षण भागहार एक स्पर्धक वर्गणाएँ 'ज गुस्प ना ख उ For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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