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________________ गणितात्मक प्रणाली १४२५ गुण नाम गुणकार का है। गुणकारकी पंक्ति लिए जहाँ निषकोंमें द्रव्य देते हैं उसका नाम गुणश्रेणी है । समय-समय गुणकार लिये विवक्षित प्रकृतिके परमाणु अन्य प्रकृतिरूप संक्रमण करनेका नाम गुणसंक्रम है । गुणकार लिये हानि अथवा हीनता या घटवारी जहाँ होती है उसका नाम गुणहानि है । विवक्षित कर्मस्थितिमें निषेकोंके उपरिवर्ती निषकोंका नाम उपरितन स्थिति है गणश्रेणीके कथनमें गुणश्रेणी आयामसे उपरिवर्ती निषेकोंका नाम उपरितनस्थिति है। केवल उदीरणाके कथनमें उदयावलीसे उपरिवर्ती निषेकोंका नाम उपरितन स्थिति है। विवक्षित प्रमाण लिये निचले निषेकोंका नाम प्रथम स्थिति है । पुनः उपरिवर्ती सर्वस्थितियों के निषकोंका नाम द्वितीय स्थिति है। उदाहरणार्थ, अन्तरायामसे निचले निषेकोंका नाम प्रथम स्थिति है। उपरले निषेकोंका नाम द्वितीय स्थिति है । अथवा संज्वलन क्रोधका जितना प्रमाण लिये प्रथमस्थिति स्थापित की गयी हो उसके निषेकोंका नाम प्रथम स्थिति है। अवशेष सर्व स्थितियोंके निषेकोंका नाम द्वितीय स्थिति है। समुदाय रूप एक क्रियामें अलग-अलग खण्ड कर विशेष करनेका नाम फालि है। उदाहरणार्थ, काण्डक द्रव्यको काण्डकोत्करण कालमें अन्यत्र प्राप्त करना। वहाँ प्रथम समय जो प्राप्त किया वह काण्डककी प्रथम फालि है। द्वितीय समयमें जो प्राप्त किया वह हिताय फालि, इत्यादि । इसी प्रकार उपशमन काल में प्रथम समय जितना द्रव्य उपशमाया, वह उपशमको प्रथम फालि है; द्वितीय समय जो उपशमाया, वह द्वितीय फालि है, इत्यादि । अन्य निषेकोंके परमाणुओंको अन्य निषेकोंमें मिलानेको अथवा देनेको निक्षेपण कहते हैं । दिये हुए निषेकोंको निक्षेपण रूप जानना चाहिए। द्वितीय स्थितिवाले निषेकोंके द्रव्यको प्रथम स्थितिवाले निषेकोंमें मिलानेको भागाल संज्ञा है। प्रथम स्थितिवाले निषेकोंके द्रव्यको द्वितीय स्थितिके निषेकोंमें मिलानेकी प्रत्यागाल संज्ञा है । विवक्षितके कालका जो प्रमाण हो वही उसका काल है। उदाहरणार्थ, एक काण्डक के घात करनेका जो काल है उसका नाम काण्डकोत्करण काल है। वहाँ प्रथम समयमें प्रथम फालिका पतन जो निचले निषेकोंमें प्राप्त होना सो होता है। इसलिए प्रथम समयको प्रथम फालिका पतन काल कहते हैं । द्वितीय समयको द्वितीय फालिका पतनकाल कहते हैं। इसी प्रकार अन्त समयको चरमफालि का पतनकाल कहते हैं । उसके पूर्व समयको द्विचरमफालि पतन काल कहते हैं । जिस कालमें अन्तरकरण करते हैं उसका नाम अन्तरकरण काल है। जिस कालमें क्रोधको वेदता है, उसके उदयको भोगता है, उसका नाम क्रोध वेदन काल है। आवली मात्र कालका अथवा उतने काल सम्बन्धी निषेकोंका नाम आवली है। वहाँ वर्तमान समयसे लेकर आवली मात्र कालको आवकी कहते हैं। आवलीके निषेकोंको भी आवली या उदयावली कहते हैं। उसके उपरिवर्ती जो आवली है उसे द्वितीयावली कहते अथवा प्रत्यावला कहते हैं। बन्ध समयसे लगाकर आवली पर्यन्त उदीरणादि क्रिया जहाँ न हो सके उसका नाम बन्धावकी या अचलावली अथवा आबावावली है । द्रव्य निक्षेपण करते समय जिन आवली मात्र निषेकोंमें निक्षेपण नहीं करते हैं उसका नाम अतिस्थापनावली है । स्थिति सत्त्व घटते हुए जो आवलिमात्र स्थिति अवशेष रह जाये उसका नाम उच्छिष्टावली है । जिस आवलीमें संक्रमण पाया जाये उसे संक्रममावली और जहाँ उपशमन करना पाया जाये उसे उपशमावली कहते हैं। अन्तः नाम माहीका (?) है । उक्त प्रमाणसे कुछ कम होना-इसे अन्त: संज्ञा दी जातीहै । जैसे कोडाकोडीके नीचे और कोडीके ऊपर प्रमाणको अन्त:कोटाकोटी कहते हैं । मुहूर्तसे कम और आवलीसे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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