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________________ धनांगुलकी अद्धच्छेद राशि घनांगुलकी वर्गशलाका राशि अथवा श्र ' log२ श्र जगश्रेणीकी वर्गशलाका राशि (नोट : यहाँ पण्डित टोडरमलने लिखा है कि द्विरूप वर्गधारामें जितने स्थान जानेपर सूच्यंगुल प्राप्त होता है, उतने ही स्थान जानेपर द्विरूप घनधारामें घनां गुल होता । स्पष्ट है कि यहाँ अनुमानसे १ को विलुप्त कर दिया गया है जो निकटतः 108२ ३ का मान हो सकता है ।) छे छे छे ३ जगश्र णीकी अर्धच्छेद राशि a क जगप्रतरकी अर्द्धच्छेद राशि = loga loga २ ( जघन्य परीतासंख्यात ) Jain Education International गणितात्मक प्रणाली छे छे ३ व २ माना गया है । [ नोट : हम इसे log श्र भी लिख सकते हैं । वस्तुतः इसका मान तिलोयपण्णत्ति में से इस आधारपर किया गया है कि राशितः ( 1082 पल्य / असंख्यात ) जगश्रेणी [ घनांगुल ] : इसे loga (अं) भी (अं) है अर्थात् ३ log छेछे हैं। : इसे loga loga (अं) लिख सकते हैं । यह log२ (३ log२ ] (अं) ) है अथवा log ३ + log2 log2 अं है जिसे निकटतः १+२ log log2 प अथवा १ + २ व रूपमें लिखना सही है ! व १६।२ व २ : इसे वि छे छे ३ भी लिखा जाता है जहाँ वि का अर्थ विरलन राशि है। इसका मान log2 प loga (अं) 3 a [ नोट : पण्डित टोडरमलने इसे इस रूपमें [ loga / ] ] १४०३ कहते हैं । यह ३ loga loga प अथवा ३ [ अ log2 पlog२ ( अं ) 3 log2_प · ( ३ ) ( log2 अं ) a a log २ प ( ३ ) ( log२ प ) ( log, प ) 1 : इसे log loga श्र भी लिख सकते हैं । इसे loga log पlog ( अ ) 3 ] भी लिख सकते हैं । a अर्थात् यह loga loga प - loga a + loga loga अं है । 3 + loga loga मं छे छे छे ६ = लिखा है कि १६ जघन्यपरीत असंख्यात लेकर रूपमें बतलाया है । ] : इसे log२ २ लिखते हैं। स्पष्ट है कि यह २ loga श्र होता है अर्थात् जगश्रेणीकी अद्धच्छेद राशिसे द्विगुणित होता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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