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________________ गणितात्मक प्रणाली १४०१ आकाश प्रदेश राशि केवलज्ञान अथवा उत्कृष्ट अनन्तानंत १६ ख ख ख : स्पष्ट है कि आकाश प्रदेश राशि वस्तुतः काल समय राशिसे अनन्तगुणी है। : केवलज्ञानकी अविभागी प्रतिच्छेद राशिको उत्कृष्ट अनन्तानन्त संख्यामानवाली माना गया है। इससे बड़ी कोई राशि नहीं है। के मू १ : इसे (के) द्वारा निरूपित कर सकते हैं . २ : इसे (के) द्वारा निरूपित कर सकते हैं। केवलज्ञानका प्रथम मूल केवलज्ञानका द्वितीय मूल पल्य के सागर सूच्यंगुल २ : यह पंकेत आवलीका भी है । यह अंगुलमें समाविष्ट प्रदेश राशि है। प्रतरांगुल ४ : अंगुल प्रदेश राशिका वर्ग । घनांगुल ६ : अंगुल प्रदेश राशिका घन । नोट : यदि अंगुल के लिए अं और आवलिके लिए आ संकेत लिये जायें तो विशेष सुविधा हो सकेगी। इसी प्रकार जगश्रेणी के लिए भी श्रे का संकेत सरल पाया जायेगा। हम इन तीन संदृष्टियोंका उपयोग आगे करेंगे। जगश्रेणी : इस क्षतिज रेखा द्वारा जगश्रेणीमें स्थित प्रदेश राशि प्ररूपित की जाती है। : इन दो रेखाओं द्वारा श्रेणीके वर्ग में स्थित प्रदेश राशि निरूपित की जाती है। जगप्रतर घनलोक : इन तीन क्षतिज रेखाओं द्वारा जगणीसे बने घनमें स्थित प्रदेश राशि प्ररूपित होती है। :क्षतिज रेखा के नीचे लिखे ७ का भाग जगश्रेणी राशिमें देने पर रज्जु अथवा रज्जुमें स्थित प्रदेश राशिका निरूपण होता है। रज्जु प्रतर : उपर्युक्त रज्जु राशिका वर्ग रज्जु प्रतर राशि होता है। यहाँ अंश तथा हर, दोनों ही वर्गित किये गये है। रज्जु घन : यहाँ रज्जु राशिका घन निरूपित है। अंश और हर जो रज्जुको निरूपित करते हैं, उनके घन करनेपर रज्जुधन स्थित प्रदेश राशि संख्या उत्पन्न होती है। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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