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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका अवाणेण | गु | सम्बधणे खंडिवे मजिसमषणमागच्छवि। |==an | तरुणखाण
ई अणेण णिसेपहारेण गुरू मजिममधणमवहरिदे पवयं । =०=
तस्वहिय
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गुगु३
गुणहाणिणा गुणिवे आविणिसेय
zaza T में बिदु जघन्यस्थितिबंधकारणकषाय
अ गु ग३
परिणामंगळोळ जघन्यपरिणामस्थितिप्रतिबद्धानुभागबंधाध्यवसायंगळप्पुविर्वमनदोलिरिसि अवरिद्विदिपरिणामम्मि थोवाणि एंविदाचार्यानि पेळल्पदुदेके दोर्ड मेले स्वस्थानचदिदं विशेषाधि- ५ कंगळागुत्तं परस्थानचदिदं संख्यातासंख्यातगुणंगळागुत्तं पोपुवप्पुरवं।
प्रथमगुणहानिद्रव्ये
गणहान्यायामेनावल्यसंख्येयभागभक्तधन्यस्थितिकारणकषायाध्यवसायसंख्येन
भक्ते
मध्यमधनं = a =
१
इदं रूपोनगुणहान्यायामार्थेन गु निषेकहारेण गु ३ भक्तं प्रचयः
अ। गु
= a aa अयं रूपाधिकगुणहान्या गुणित आदिनिषेक: स्यात् = a = a गु इति ॥९६३।। ०१
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ध्यवसाय स्थानोंका प्रमाण है। वही यहाँ द्रव्य है । तथा जघन्य स्थितिसम्बन्धी स्थितिबन्धा- १० ध्यवसाय स्थानोंका प्रमाण यहाँ स्थितिका प्रमाण है। आवलीमें दो बार असंख्यातका भाग देनेपर जो प्रमाण आवे वह नानागणहानि शलाकाका प्रमाण जानना। स्थितिके प्रमाणमें नानागणहानिका भाग देनेपर जो प्रमाण आवे वही गणहानि आयामका प्रमाण जानना। उसका दूना दो गुणहानिका प्रमाण है । आवलीके असंख्यातवें भाग अन्योन्याभ्यस्त राशिका प्रमाण है। उक्त द्रव्यमें एक हीन अन्योन्याभ्यस्त राशिका भाग देनेपर जो प्रमाण आवे वही १५ प्रथम गुणहानिके द्रव्यका प्रमाण है। उससे दूना-दूना द्वितीयादि गुणहानियोंका द्रव्य होता है । प्रथम गुणहानिके द्रव्यमें गुणहानि आयामका भाग देनेपर मध्यम धनका प्रमाण होता है। उसमें एक हीन गुणहानि आयामके आधेसे हीन दो गुणहानिका भाग देनेपर चय आता है । इस चयको एक अधिक गुणहानि आयामसे गुणा करनेपर प्रथम निषेक होता है ।।९६३।।
१. म णामप्रति । JainEducation Internation-१७४
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