SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 696
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १३२४ गो० कर्मकाण्डे अनंतरसमय बोळु कर्मप्रकृतिस्वरूपमं पत्तविडुगुमितु द्वितीयादिसमयंगळोळु द्वितीयादिनिषकंगळु क्रमदिदं प्रकृतिस्वरूपमं पत्तविडुत्तं पोगि चरमनिषेकमुत्कृष्टस्थितिचरमसमयदोळ कर्मप्रकृतिस्वरूपमं पत्तविटु पोकुदबुदत्यं ॥ अनन्तरसमयप्रबद्धप्रमाणमुमं वर्तमानसमयदोळु ओंदु समयप्रबद्धं बंधमक्कु । मोंदु समयप्रबद्धमुदयमक्कुम बुदुमं पेळ्बपरु।: समयपबद्धपमाणं होदि तिरिच्छेण वट्टमाणम्मि। पडिसमयं बंधुदओ एक्को समयप्पबद्धो दु ॥९४२।। समयप्रबद्धप्रमाणं भवेत्तियंग्गू पेण वर्तमाने । प्रतिसमयं बंधोदयमेकसमयप्रबद्धस्तु ॥ प्रागुक्तसमयप्रबद्धप्रमाणं द्रव्यं त्रिकोणरचनयोळु विवक्षितवर्तमानसमयदोळ मोहनीयकर्म प्रकृत्याबाधारहितोत्कृष्टस्थितिमात्रगळितावशेषसमयप्रबद्धंगळोळु प्रथमसमयप्रबद्धचरमनिषेकं मोदल्गोंडु चरमसमयप्रबद्धप्रथमनिषेकपर्यंतं तिर्यगू पदिदमेकै कनिषेकंगळ संपूणकसमयप्रबद्धद्रव्यप्रमाणमक्कुमितु प्रतिसमयमेकसमयप्रबद्धमुक्यमुं बंधमुमक्कु । संदृष्टि :४१६१४४८१४८० ४४८१४८०।५१२/ ४८०१५१२॥ ९/०1०1010101 ५१२॥ ० ९।१०1०101010100 ९।१०।११।०101010101 ९।१०।११।१२।०1०1010101 ३५२३८४ ९।१०।११।१२।१३।०101010101 ३८४॥४१६ ९।१०।१।१२।१३।१४।०101010101२४०१२५६।२८८/३२०३५२।३८४१४१६१४४८ ९।१०११।१२।१३।१४।१५10101010100२५६।२८८।३२०१३५२३८४१४१६६४४८१४८० ।९।१०।११।१२।१३।१४।१५।१६०10101010॥२८८/३२०१३५२।३८४|४१६१४४८१४८०१५१२ । ० ० ० चरमो निषेकः स्यात् । तत्समये उदेत्यनन्तरसमये कर्मस्वभावं त्यजेदित्यर्थः ॥९४१।। अथ समयप्रबद्धप्रमाणद्रव्यं वर्तमानसमये बध्नात्युदेति चेत्याह त्रिकोणरचनायां विवक्षितवर्तमानसमये विवक्षितमोहनीयकर्मणः आबाधारहितोत्कृष्टस्थितिमात्रगलिता१५ वशेषसमयप्रबद्धेषु प्रथमसमयप्रबद्धचरमनिषकमादि कृत्वा चरमसमयप्रबद्धप्रथमनिषेकपर्यंतं तिर्यगेकै कनिषेको अनन्तर वे परमाणु कर्म स्वभावको छोड़ देते हैं। इस प्रकार प्रथम निषेकसे दूसरे निषेककी और दूसरेसे तीसरे निषेककी स्थिति एक-एक समय अधिक होते-होते अन्तिम निषेककी पूरी स्थिति होती है ।।९४१।। ___ आगे कहते हैं कि समयप्रबद्ध प्रमाण द्रव्य वर्तमान एक समयमें बँधता है और उदय२० रूप होता है त्रिकोण रचनामें विवक्षित किसी एक वर्तमान समयमें विवक्षित मोहनीय कर्मकी आबाधा रहित उत्कृष्ट स्थिति मात्र कालमें समय-समयमें बँधनेवाले समयप्रबद्धोंमें-से जिन निषेकोंकी निर्जरा हो गयी उनकी तो निजरा हो गयी, शेष रहे निषेकों में से प्रथम समय प्रबद्धका अन्तिम निषेकसे लगाकर अन्तिम समयप्रबद्धके प्रथम निषेक पर्यन्त तिर्यग रचना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy