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गो० कर्मकाण्डे
न्याभ्यस्तराशि प्रमाणमक्कुं। समुच्चयसंदृष्टि :
नाना = छेवछे । अन्योन्या मू३३ नाना= छ । २ अन्योन्या मू२० नाना = छ । ३ अन्योन्या मू २०
छ। ४ अन्योन्या मू १०
सा १० को २ सा २० को २ सा ३० को २ सा ४० को २
नाना =
नाना = छ। ५
अन्योन्या मू१।३० सा ५० को २
नाना = छ । ६ नाना = छ । ७
अन्योन्या म १।२० सा ६० को २ अन्योन्या म्।प सा ७० को २
अनंतरमी नानागुणहानिशलाकेगळ्गे द्विकमनित्तु वगितसंवर्ग माडिदोडे तंतम्म स्थितिगळन्योन्याभ्यस्तराशिगळप्पु दु पेळ्दपरु । :
इसलायपमाणे दुगसंवग्गे कदे दु इट्ठस्स ।
पयडिस्स य अण्णोण्णब्भत्थपमाणं हवे णियमा ।।९३७।। इष्टशलाकाप्रमाणानि द्विकसंवर्ग कृते तु इष्टायाः प्रकृतेरन्योन्याम्यस्तप्रमाणं भवेन्नियमात् ॥
ई नानागुणहानिशलाकेगळोल तन्निष्टमप्प शलाकेगळ प्रमाणंगळं द्विकंगळं संवग्गं माडुत्तं विरलु लब्धराशि तन्निष्टप्रकृतिगळन्योन्याभ्यस्तराशिप्रमाणं नियमविंदमक्कु। मंतु द्विकसंवर्ग माडि लब्धराशिगळोळिंतप्प राशियितप्प प्रकृतिगळ्गन्योन्याभ्यस्तराशियक्कुमदु पेळ्वपर।:
१। तदन्योन्याम्यस्तराशिः स्यात् ॥९३६॥ उक्तान्योन्याम्यस्तराशीनाह
स्वेष्टशलाकाप्रमाणद्विकसंवर्गे कृते स्वेष्टप्रकृतेरन्योन्याभ्यस्तराशिप्रमाणं नियमात्स्यात् ॥९३७॥ तत्कि कस्य कर्मणः स्यादिति प्रश्ने माह
दोके अंक रखकर परस्परमें गुणा करनेसे पल्यकी वर्गशलाका होती है, उसे घटाओ। इस
प्रकार पल्यकी वर्गशलाकासे हीन पल्य प्रमाण अन्योन्याभ्यस्त राशि होती है। इस तरह १५ स्थितिकी अपेक्षा नानागुणहानि और अन्योन्याभ्यस्त राशि कही। सो जिस कर्मप्रकृतिकी जितनी स्थिति हो उसकी उस स्थिति सम्बन्धी जानना ।।९३६॥
ऊपर कही अन्योन्याभ्यस्त राशिको गाथा द्वारा कहते हैं -अपनी-अपनी इष्टशलाकानाना गुणहानि शलाका प्रमाण दोके अंक रखकर परस्पर में गुणा करनेपर अपनी इष्ट प्रकृतिकी अन्योन्याभ्यस्त राशिका प्रमाण नियमसे होता है ।।९३७॥
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