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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १३०५ मुन्नं तिर्य्यग्रूपदद मेलुं स्थानदोळु स्थापिसल्पट्ट पंक्तिंगलोळु प्रथमपंक्तियं वशकोटीको टिसागरोपमप्रतिबद्धमं माडि तत्प्रथम पंक्तिगतराशिगळं फलराशिगळं माडि प्रतिराशियं पत्तु कोटीकोटिसागरोपमनिच्छाराशियं माडि गुणिसि सप्ततिकोटी कोटिसागरोपमप्रमाण राशिथिवं भागसि बंद लब्धरा शिगळोळु चरमराशिप्रमाणं पल्यच्छेदाष्टमभागमक्कुमाद्यराशिप्रमाणं पत्यवर्गशलाकाद्ध' च्छेदंगळप्पुवल्लि अंतधणं छे । १ गुणगुणियं छे । ८ आदि । व छे । विहीषणं । ५ ८ ८ छे ८ व छे । रूऊणुत्तरभजिय छे व छे म दिंतिदु पत्तु कोटीकोटिसागरोपमस्थितिप्रतिबद्धनाना ७ गुणहानिशलाकेगळवु । ई नानागुणहानिशलार्क गळान्योन्याम्पस्तरा शिप्रमाणर्म नितक्कु वोर्ड दर्प दो छे व छे ई नानागुणहानिशलाके गळोळिद्दं ऋणमं तेगवु बेरं स्थापिसल्प डुवुवु ७ व छे शेष राशिप्रमाणमनिदं छे संदृष्टि: : ७ ७ प्र = सा = ७० को २ फ = छे ७ ८ प्र = सा = ७० । को २ फ = छे प्र = सा = ७०१ को २ फ = ८१८ • छो७ टाटाट ० ० ० ० ० प्र = सा = ७०: को २ फ = व छं १८८७ प्र = सा = ७० को २ फ = व छे १८७ प्र = सा = ७० । को २ फ - व छे ॥७ इ = सा = १० को २ लब्ध छे । १ ८ इ = सा = १०=को २ लब्ध छे । १ ८।८ इ - सा = १० को २ लब्ध छे । १ टाटाट ० O Jain Education International इ - सा = १० इ - सा = १० इ = सा = १० १ संगुण्य सप्ततिकोटी कोटिसागरोपमप्रपाणेन भक्ते लब्धं चरिमं छे १ गुणिगुणियं छे ८ आदि व छे विहोणं १० ८ ८ ० को २ लब्ध व छे । ८८ को २ लब्ध व छे । ८११ को २ लब्ध व छे । १ छे-व-छे एऊणुत्तरभजियं छे-व-छे इति दशकोटीकोटिसागरोपमस्थितिप्रतिबद्ध नानागुणहा निशलाका भवन्ति । ७ शलाका जानना । उनके जोड़नेका विधान कहते हैं 'अंतधणं गुणगुणियं' इत्यादि सूत्र के अनुसार पल्यके पहले, दूसरे, तीसरे वर्गमूलके अर्द्धच्छेद मिलकर सात गुणा पल्यके अर्द्धच्छेदोंके आठवें भाग होते हैं । उनको दस कोड़ाकोड़ी सागरसे गुणा करके सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरका भाग देनेपर १५ पल्य के अर्द्धच्छेदोंका आठवाँ भाग हुआ । उसे यहाँ अन्तधन जानना । चूँकि प्रत्येक जोड़ में गुणकार आठ है इससे इसे आठसे गुणा करनेपर पल्यके अर्द्धच्छेद प्रमाण होता है। उसमेंसे आदि घटाना चाहिए । सो पल्यकी वर्गशलाकाका दूसरा और पहला वर्ग तथा पल्यकी वर्गशलाका इन तीनोंके अर्द्धच्छेद मिलकर सात गुने पल्यकी For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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