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________________ ५ १० १५ सिद्धे विशुद्धलिये पणट्ठकम्मे विणट्ठसंसारे । पणमिय सिरसा वोच्छं कम्मट्ठदिरयणसम्भावं ॥९१३॥ सिद्धान्शुद्धात्मप्रदेशान् प्रणष्टकर्मणो विनष्टसंसारान् । प्रणम्य शिरसा वक्ष्यामि कर्मस्थितिरचनासद्भावं || प्रणष्टघात्यघातिकरुं विनष्टसंसाररुं शुद्धात्मप्रदेशरुमध्य सिद्धपरमेष्ठिगळां तले एकदिदं नमस्कार माडि कम्र्मस्थितिरचना सद्भावमं पेळवर्म दिताचाय्यंरु प्रतिज्ञेयं माडि पेदरु । कम्म सरूवेणागयदव्वं ण य एदि उदयरूवेण । वेणुदीरणस्स य आबाहा जाव ताव हवे ||९१४॥ कर्म्मस्वरूपेणागतद्रव्यं न चेत्युदयरूपेण । रूपेणोवीरणायाश्चाबाधा यावत्तावद्भवेत् ॥ २५ कर्मस्वरूपवदं परिणमिसिद काम्मंणद्रव्यमुदयरूपदिदमुदीरणारूपविद मुर्मन्नेवरं परिणमनमर्नध्ददर्न वरमदक्का कालमाबाधे ये 'दु पेळल्पदु । इल्लि उदयापेको यिनाबाधेयं पेदपरु :उदयं पडि सत्त आबाहा कोडकोडिउवहीणं । वाससयं तप्पडिभागेण य सेसद्विदीणं च ॥ ९९५ ॥ उदयं प्रति सप्तानामाबाधा कोटोकोट घुदधीनां । वर्षशतं तत्प्रतिभागेन च शेषस्थितोनां च ॥ प्रणष्टवात्यघातिकर्मणः विनष्टसंसारान् शुद्धात्मप्रदेशान् सिद्धपरमेष्ठिनः शिरसा प्रणम्य कर्मस्थितिरचनासद्भावं वक्ष्ये ||९१३॥ कर्मस्वरूपेण परिणतकार्मणद्रव्यं यावदुदयरूपेण उदीरणारूपेण वा नैति न परिणमति तावदाबाधेत्युच्यते ॥ ९९४ ॥ जिनके घाती और अघाती कर्म पूर्ण रूपसे नष्ट हो गये हैं अतएव जिन्होंने संसारको २० विशेषरूपसे नष्ट कर दिया है, तथा विशुद्ध आत्मप्रदेश ही जिनका वासस्थान है उन सिद्ध परमेष्ठीको मस्तक से नमस्कार करके कर्म स्थिति रचनाके सद्भावको कहते हैं । विशेषार्थ - कर्मों की स्थिति में प्रतिसमय निषेकों में कितना - कितना कार्माण द्रव्य पाया जाता है ऐसी रचना अस्तित्वका कथन करते हैं । यह कथन पहले भी जीव काण्डके योगमार्गणाधिकार में तथा कर्मकाण्ड बन्ध उदय सत्त्व अधिकार में कहा है ।।९१३ || कर्मरूपसे परिणमा कार्माण द्रव्य जबतक उदयरूपसे या उदीरणारूपसे परिणमन नहीं करता तबतक उस कालको आबाधाकाल कहते हैं ||९१४ || Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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