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________________ १२२२ गो० कर्मकाण्डे खा ६५५७६ ॥ प्रमत्तसंयतंगे सर्वपदभंगं पेळल्पडुगुं । प्रमतंगे प्रत्येकपदंगळ मतिज्ञानादि मनुष्य गतिपय्यंतं पदिने टुं पदंगळप्पुवु। सदृशपदंगळ लिंगकषायलेश्यासम्यक्त्वभेददिदं नाल्कप्पुवंतु द्वाविंशतिपदंगळ द्विगुणद्विगुणक्रमदिदमप्पुवु । संदृष्टि-म १। श्र २। अ४। म ८। च १६ । अ ३२ । अ६४ । दा. १२८ । ला २५६ । भो ५१२। उ १०२४ । वी २०४८। अ ४०९६ । अ ८१९२ । सकलसंय १६३८४ । जो ६५=१।भ ६५ = म गति ६५ = २ । पिडपर्व : २ तिलि ३ । क ४ । ले ३ । ६५ =२। २ । २।। उ ६५=१६७२ म लि ३ । क ४ । ले ३। ६५ २।२।२ वे ६५-१६७२ मिलित्वा । ६५%८ । ७२ |क्षा मनुलि।क४ाले ३३६५ १६।३६ | मिलित्वा । उ । वे।६५%१६।१४४ | क्षा ३५-५७६ मिलित्वा सर्वपदघनं ६५ =२९९१ ऋ१ । क्षा ६५ =५७६ । प्रमत्ते प्रत्येकपदानि मनुष्यगत्यंतान्यष्टादश सदशपदानि लिंगकषायलेश्यासम्यक्त्वानि संदृष्टि:-म १ श्रु २ । अ४ । म ८ । च १६ । अ ३२ । अ६४ । दा १२८ । ला २५६ । भो ५१२ । उ १०२४ । वी २०४८। अ ४०९६ । अ ८१९२। सकलसंयम १६३८४ । जी-६५=१ भ ६५=१। म गति २ १० सहित तीन लेश्यासे गुणा करनेपर सब मिलकर ८४७२ =५७६ पाँच सौ छिहत्तर पण्णट्ठी भंग हुए। एक लेश्याके भंगसे दूने एक सम्यक्त्वके भंग सोलह पण्णट्टी होते हैं। उनको तियचमें तीन लिंग चार कषाय छह लेश्या और मनुष्यमें तीन लिंग चार कषाय छह लेश्यासे गुणा करनेपर १६४७२-११५२ ग्यारह सौ बावन पण्णट्ठी भंग होते हैं। इतने भंग उपशम सम्यक्त्वके और इतने ही वेरक सम्यक्त्वके जानना। झायिक सम्यक्त्वमें मनुष्यगतिमें १५ तीन लिंग चार कषाय तीन लेश्यासे सोलह पण्णट्ठीको गुणा करनेपर १६४३६=५७६ पाँच सौ छिहत्तर पण्णट्ठी प्रमाण भंग होते हैं। इस प्रकार देशसंयतमें सब मिलकर उनतीस सौ इक्यानबे गुणित पण्णट्ठीमें एक कम और क्षायिक सम्यक्त्वकी अपेक्षा पाँच सौ छिहत्तर पण्णट्ठी प्रमाण भंग होते हैं। प्रमत्तमें मनःपर्ययज्ञान प्रत्येकपद बढ़ जाता है। तथा देशसंयम की जगह सराग२० संयम हो जाता है । तथा दूसरी गति न होनेसे मनुष्यगति भी प्रत्येकपद हो जाता है। इस प्रकार प्रत्येकपद अठारह हुए-मति १, श्रुत २, अवधि ४, मनःपर्यय ८, चक्षु १६, अचक्षु ३२, अवधि ६४, दान १२८, लाभ २५६, भोग ५१२, उपभोग १०२४, वीर्य २०४८, अज्ञान ४०९६, असिद्धत्व ८१९२, सकलसंयम १६३८४, जीवत्व ३२७६८, भव्यत्व पण्णट्ठी ६५= मनुष्य गति दो पण्णट्ठी, इस तरह दूने-दूने भंग होते हैं। पिण्डपद चार हैं-लिंग, कषाय, लेश्या, २५ सम्यक्त्व । अन्तिम प्रत्येक पद मनुष्यगतिके भंग दो पण्णट्ठी प्रमाण हैं। उनसे दूने एक लिंग भंग चार पण्णट्ठी हुए। उनको तीन लिंगसे गुणा करनेपर बारह पण्णट्ठी हुए । एक लिंगके भंगोंसे दूने एक कषायके भंग आठ पण्णट्ठी होते हैं। उनको तीन वेद सहित चार कषायसे गुणा करनपर छियानबे पण्णट्ठी प्रमाण भंग होते हैं । एक कषायके भंगोंसे दूने एक लेश्याके भंग सोलह पण्णठ्ठी होते हैं। उनको तीन लिंग चार कषाय सहित तीन लेश्यासे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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