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________________ १२२० गो० कर्मकाण्डे ६५ = १६६४ । देशसंयतंर्ग सर्वपदभंग तरल्पडुगुमदते दोडे-देशसंयतंगे असदृशपदंगळु मतिश्रुतावधिज्ञानचक्षुरचक्षुरवधिदर्शनदानादिपंचकमज्ञानदेशसंयममसिद्धत्वमं जीवत्वभव्यत्वमें दिवु पादिनारु पदंगळप्पुवु। सदृशपदंगळु गतिलिंगकषायलेश्यासम्यक्त्वभेदविंदमय्वप्पुवंतु एकविंशति पदंगळ द्विगुणद्विगुणक्रमदिदं भंगंगळप्पुवु । संदृष्टि । म १। श्रु २। अ ४ । च ८ । अ १६ । अ ३२ । ५ दा ६४ । लाभ १२८ । भोग २५६ । उप ५१२ । वी १०२४ । अ २०४८ । दे ४०९६ । अ ८१९२ । जी १६३८४ भ ६५ = १॥ नर-लि १ क ४ ले । ३। ६५ =८ । सम्यक्त्व उपश ६५ = १६ । १८० तिर्य = लि ३ क ४। ले ६।६५ =८ । वेदक ६५ = १६ । १८० मनु = लि ३ क ४ । ले ६ । ६५ %८ | क्षानरलिं १ क ४ ले। १ । ६५ = १६ देव = लि २ क ४ । ले ३। ६५-८ | तिरि = लि १क ४ ले ४। ६५ = १६ मिलित्वा ६५%८। १८० | मनु -लिं३ । क४ । ले ६। ६५ -१६ देव = लि १ क ४ । ले ३ । ६५ = १६ | मिलित्वा क्षायिक । ६५=१६। १०४ मिलित्वा सर्वधनं ६५ = ७३६७ ऋ१ । क्षायिक ६५% १६६४ । देशसंयते पदानि तान्येवैकविंशतिः (?) किन्तु असंयमस्थाने देशसंयमः, न देवनरकगती। संदष्टिः-म २ । १४ । च ८ । १६ । अ ३२ । दा ६४ । ला १२८ । भो २५६ । उ ५१२। वो १०२४ । १। १. कषाय सहित तीन शुभलेश्यासे गुणा करनेपर सब मिलकर ८४१८०-चौदह सौ चालीस पण्णट्ठी भंग होते हैं। एक लेश्याके भंगोंसे दूने एक सम्यक्त्वके भंग सोलह पण्णटो होते हैं। उनको नरकमें एक लिंग चार कषाय तीन लेश्यासे, तियेचमें तीन लिंग चार कषाय छह लेश्यासे, मनुष्यमें भी तीन लिंग, चार कषाय छह लेश्यासे और देवमें दो लिंग चार कषाय तीन लेश्यासे गुणा करनेपर सब मिलकर १६४ १८०-२८८० अट्ठाईस सौ अस्सी पण्णट्ठी १५ प्रमाण भंग उपशम सम्यक्त्वके, इतने ही भंग वेदक सम्यक्त्वके होते हैं । क्षायिक सम्यक्त्व का कथन भिन्न है। सो एक लेश्याके भंगोंसे दूने सोलह पण्णट्ठी प्रमाण भंग क्षायिक सम्यक्त्वके हैं। इनको नरकमें एक लिंग चार कषाय एक लेश्यासे, तिर्यच में एक लिंग चार कषाय चार लेश्यासे, मनुष्य में तीन लिंग चार कषाय छह लेश्यासे, देवमें एक लिंग चार कषाय तीन लेश्यासे गुणा करनेपर सब मिलकर १६४ १०४ = १६६४ सोलह सौ चौंसठ २. पण्णट्ठी प्रमाण भंग होते हैं। इस प्रकार असंयतमें प्रत्येक पद और पिण्डपदोंके भंगोंको जोड़नेपर पण्णट्ठीको तिहत्तर सौ अड़सठसे गुणा करके उसमें एक घटानेपर सर्वपद भंग होते हैं। देशसंयतमें असंयमके स्थानपर देशसंयम रखना। तथा देवगति और नरकगति नहीं होतीं। सो प्रत्येक पद सोलह-मति १, श्रुत २, अवधि ४, चक्षु ८, अचक्षु १६, अवधि ३२, २५ दान ६४, लाभ १२८, भोग २५६, उपभोग ५१२, वीर्य १०२४, अज्ञान २०४८, देशसंयम ४०९६, असिद्धत्व ८१९२, जीवत्व १६३८४, भव्यत्व ३२७६८ हैं। भंग दूने-दूने होते हैं। भव्यत्वके भंग आधी पण्णट्ठी प्रमाण हैं। उनसे दूने एक पण्णट्ठी प्रमाण भंग एक गतिके हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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