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________________ ६७८ गो० कर्मकाण्डे अपकर्षणकरणमुमत्त अयोगिकेवलियोळ पेळद सत्वप्रकृतिगळे भत्तय्दकं सयोगकेवलिचरमसमयपय्यंतमक्कु । ८५ ॥ क्षीणकषायगुणस्थानावसानमाद निद्राप्रचलाज्ञानावरणांतरायदशकवर्शनावरणचतुष्कमुमितु षोडशप्रकृतिगळ्गेयुं सूक्ष्मसांपरायगणस्थानावसानमाव संज्वलनलोभ प्रकृतिगेयुं मयदेशपयंतमपकर्षणकरणमक्कु । मिल्लि क्षयदेशमें बुवाउद दोडे परमुखोददिवं ५ किडुव प्रकृतिगळ्गे चरमकांडक चरम फाळियं क्षयदेश, बुदु। स्वमुखोवदिदं किडुवप्रकृतिगळ्गे समयाधिकावलियं क्षयदेशमें बुददु कारणमागि क्षीणकषायन सत्वव्युच्छित्तिप्रकृतिगळ पदिनारक्कं सूक्ष्मसांपरायन सत्वव्युच्छित्ति संज्वलनलोभक्कमु स्वमुखोददिदं किडुव प्रकृतिगळप्पुरिद समयाधिकावलिपयंतमपकर्षणकरणमय। संदृष्टि :-- लो अपकर्षणकरणं पुनरयोगोक्तपंचाशीतिसत्त्वस्य सयोगचरमसमययंतं भवति। क्षीणकषायसत्त्वव्युच्छि१० तिषोडशानां सूक्ष्मसांपरायसत्त्वव्युच्छित्तिसंज्वलनलोभस्य च क्षयदेशपयंतमपकर्षणं स्यात् । तत्र क्षयदेशो नाम परमुखोदयेन विनश्यतां चरमकांडकचरमफालिः, स्वमुखोदयेन विनश्यतां च समयाधिकावलिस्तेनैषां सप्तदशानां समयाधिकावलिपर्यंतमपकर्षणं स्यात् । संदृष्टिः १६ अयोगीमें जिन पिचासी प्रकृतियोंकी सत्ता कही है उनका अपकर्षणकरण सयोगीके अन्त समय पर्यन्त होता है। क्षीणकषायमें सत्त्वसे विच्छिन्न हुई सोलह और सूक्ष्मसाम्प१५ रायमें सत्त्वसे विच्छिन्न हुआ सूक्ष्मलोभ इनका अपकर्षण करण अपने क्षयदेश पर्यन्त होता है। शंका-क्षयदेश क्या है ? समाधान-जो प्रकृति अपने ही रूप उदय होकर नष्ट होती है उसे स्वमुखोदयी कहते हैं। स्वमुखोदयी प्रकृतियोंका एक समय अधिक आवली प्रमाण काल क्षयदेश है। जो २० प्रकृति अन्य प्रकृतिरूप उदय देकर नष्ट होती हैं वे परमुखोदयी हैं, उनका क्षयदेश अन्तिम काण्डककी अन्तिम फाली है। अतः इन सतरह प्रकृतियोंमें एक समय अधिक आवलीकाल पर्यन्त अपकर्षण होता है ।।४४५।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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