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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्वप्रदीपिका ११२७ इंतु प्रत्ययंगळगे भंगत्रयमरियल्पडुगु । मिल्लि मिथ्यादृष्ट्याविगळोळावुवु व्युच्छित्तिप्रत्ययंगळे बोर्ड गाथाचतुष्टयदिदं पेळल्पडुगुं : मिच्छे पण मिच्छत्तं पढमकसायं तु सासणे मिस्से । सुण्णं अविरदसम्मे बिदियकसायं विगुव्वदुगकम्मं ॥ ओराळमिस्सतसवह णवयं देसम्मि अविरदेक्कारा । तवियकसायं पण्णर पमत्तविरदम्मि हारदुगछेदो। सुण्णं पमादरहिवेऽपुव्वे छण्णोकसाय बोच्छेदो। अणियट्टिम्मि य कमसो एक्केक्क वेदतिय कसायतियं ॥ सुहमे सुहुमो ळोहो सुण्णं उवसंतगेसु खोणेसु । अळियुभयवयणमणचउ जोगिम्मि य सुणह बोच्छामि ॥ सच्चाणुभयं वयणं मणं च ओराळकायजोगं च । ओराळमिस्सकम्म उवयारेणेव सब्भाओं॥ इंतुक्त प्रत्ययंगळ्गे विशेषकथनाधिकारंगलं निर्देशिसिदपः-- अवरादीणं ठाणं ठाणपयारा पयारकूडा य । कूडुच्चारणभंगा पंचविहा होति इगिसमये ॥७९१॥ जघन्यादीनां स्थानं स्थानप्रकाराः प्रकारकूटाश्च । कूटोच्चारणभंगाः पंचविधा भवत्येकस्मिन्समये॥ ते के ?अथ विशेष वक्तुमधिकारानिदिशति mamimmmmmmwww मिथ्यात्वमें पाँच मिथ्यात्वकी व्युच्छित्ति होती है। अर्थात् ये पांच ऊपरके गुणस्थानों-. में नहीं रहते। सासादनमें प्रथम चार कषाय, मिश्रमें शून्य, अविरतमें दूसरी चार कषाय, वैक्रियिकद्विक कार्माण औदारिक मिश्र त्रसहिंसा ये नौ, देशसंयतमें ग्यारह अविरति तीसरी चार कषाय ये पन्द्रह, प्रमत्तविरतमें आहारकद्विक, अप्रमत्तमें शून्य, अपूर्वकरणमें छह नोकषाय, अनिवृत्तिकरणमें क्रमसे एक-एक करके तीन वेद तीन कषाय, सूक्ष्म साम्परायमें सूक्ष्म लोभ, उपशान्त कषायमें शून्य, क्षीणकषायमें असत्य और उभय मनोयोग तथा । २५ वचनयोगकी व्युच्छित्ति होती है । सयोगीमें सत्य अनुभय वचन तथा मन और औदारिक औदारिक मिश्र कार्माण ये सात योग उपचारसे हैं ॥७९०॥ आगे आस्रवोंका विशेष कथन करने के लिए अधिकार कहते हैंक-१४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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