SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 465
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कर्णाटवृत्ति जोपतत्वत्रदीपिका १०९३ विपरुणळगे उ ३१ । बं २८ ५। ९२।१७ ॥ असंयतरुगळगे उ ३१ । बं २८ । दे। स ९२ । ९० ॥देशसंयतरुगळगे उ ३१ । वं २८ । दे । स ९२। ९०॥ मनुष्यगतिजरोळ मिथ्यादृष्टियादियागि क्षोणकषायगुणपथ्यंत मल्लियुमेकत्रिंशत्प्रकृतिस्थानोदयं संभविसदु । सयोगिकेवलि भट्टारकनोळ तीर्थयुतमागि भाषापर्याप्तियोळ उ ३१ । बं । ० । स ८० । ७८ ॥ यितेत्रिंशत् प्रकृतिस्थानोदयाधिकरणदोळ बंधसत्त्वस्थानंगळ योजिसल्पद्रुवनंतरं नवो- ५ दयस्थानदोळ बंध संभविसतु । सत्त्वस्थानंगळ योजिसल्पडुगुं मेंते दोडे अयोगिकेवलि भट्टारकनोळ "तदि एक्कं मणुवगदी पंचिदियसुभगतसतिगादेज्जं । जसतित्थं मणुवाऊ उच्चं च अजोगिचरिमम्मि ॥" दिती द्वादशोदय प्रकृतिगळो नामकर्मप्रकृतिगळोळु तीर्थयुतमागि नवप्रकृतिः गळप्पुवल्लि उ९ । बं। ०। स ८०। ७८ । १०॥ तीर्थरहितमागि उ ८ । बं । ० । स ७९ । ७७।९॥ यितुदयस्थानकाधिकरणकोळ बंधसत्त्वस्थानंगळ परमागमाऽविरोदिदं योजिसल्पटुवनंतरं तत्त्वैकस्थानाधिकरणदो बंधोदयस्थानंगळं गाथासप्तकदिदं आचार्यतिदं पेळल्पडुगुमदते दोर्ड - सत्ते बंधुदया चदुसगस गणव चदुसगं च सगणवयं । छण्णव पणणव पणचदु चदुसिगिछपकं णभेक सुण्णेगं ॥७५३॥ सत्वे बंधोदयाश्चतुः सप्त सप्त नव चतुः सप्त च सप्तनवकं । षण्नव पंचनव पंचचत्वारि १५ चतुर्बेकषट्कं नभ एक शून्यैकं ॥ " 0 स ९०, मिश्रे उ ३१, बं २८ दे, स ९२, ९०, असंयते उ २१, बं २८ दे, स ९२, ९०, देशसंयते उ ३१, बं २८ दे, स ९२, ९०, मनुष्येषु न क्षीणकषायांतं । सयोगे सतीर्थ । भाषोपर्याप्तौ उ ३१, बं०, स ८०, ७८ । नवकमयोगिचरमसमय एव । उ ९, बं०, स ८०, ७८,१०, अष्टकमपि तत्रैव तीर्थवियुते उ २८, बं०. स ७९, ७७, ९॥७५२॥ एवमुदयस्थानाधिकरणे बन्धसत्त्वस्थानान्याधेयत्वेनागमाविरोधेन योजयित्वा २० सत्त्वस्थानाधिकरणे बन्धोदयसत्त्वस्थानान्याधेयत्वेन गाथासप्तकेनाह पानबे, नब्बे, अठासी, चौरासीका है । सासादनमें बन्ध देवसहित अठाईस, तियंच या मनुष्य सहित उनतीस या तिथंच उद्योत सहित तीसका है। सत्त्व नब्बेका है। मिश्रमें बन्ध देव सहित अठाईस और सत्व बानबे-नब्बेका है। असंयतमें बन्ध देवगति सहित अठाईसका और सत्त्व बानबे नब्बेका है । देश संयतमें बन्ध देवगति सहित अठाईसका और सत्त्व २५ बानबे नब्बेका है। मनुष्योंमें क्षीणकषाय पर्यन्त इकतीसका उदय नहीं है । तीर्थकरके भाषापर्याप्तिमें उदय है । वहाँ बन्ध नहीं है । सत्त्व अस्सी-अठहत्तरका है। नौका उदय अयोग केवलीके हैं। वहां सत्त्व अस्सी, अठहत्तर, दसका है । आठका उदय भी वहीं सामान्य केवलीके होता है । वहाँ सत्त्व उन्यासी, सतहत्तर, नौका है । दोनोंमें बन्ध नहीं है ।।७५२।। इस प्रकार उदयस्थानरूप आधारमें बन्धस्थान और सत्त्वस्थानको आधेय बनाकर आगमानुसार कथन करके आगे सत्त्वस्थानको आधार और बन्धस्थान उदयस्थानको आधेय बनाकर सात गाथाओंसे कथन करते हैं ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy