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________________ १०७५ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका सत्तं दुणउदिणउदीतिय सीदडहत्तरी य णवगट्टे । बंधो ण सीदिपडिसु समविसमं सत्तमुद्दिटुं ॥७५२॥ सत्त्वं द्वानवतिनवतित्रयमशीत्यष्टसप्ततिश्च नवाष्टसु बंधो न अशीति प्रभृतिषु समविषमं सत्त्वमुद्दिष्टं ॥ द्वानवतियुं नवतित्रयमुमशीतियुमष्टसप्ततियं सत्त्वमक्कुं। उ ३१ । बं २३ । २५ । २६ । ५ २८ । २९ । ३० ॥ स ९२।९०। ८८ । ८४ । ८० । ७८ ॥ नवप्रकृत्युदयस्थानदोळमष्टप्रकृत्युदयस्थानदोळं बंधस्थानमिल्ल । सत्त्वस्थानंगळ क्रमदिदमशीत्यादिषट्सत्वस्थानंगळोळु समत्रिस्थानं. गळं विषमत्रिस्थानगळं सत्वमक्कुं। उ ९ । बं । स ८० । ७८ ॥ १० ॥ मत्तमुदय ८ । बं । । स ७९ । ७७ ॥९॥ यिल्लि विशतिप्रकृत्युदयस्थानं तीर्थरहितसमुद्घातकेवलियोळमक्कुमल्लि नामकर्मबंधमिल्ल । सत्वस्थानंगळु तीर्थरहितनवसप्ततिस्थानमुं सप्तसप्ततिस्थानमुमप्पुवु । उ २० । १० बं ० । स ७९ । ७७। एकविंशत्युदयस्थानमानुपूव्यरहिततीर्थसहितं प्रतरद्वयलोकपूरणसमुद्घातकेवलियोळं चतुर्गतिजरोळमप्पुतानुपूव्यंयुतोदयस्थानमप्पुरिदं विग्रहगतियोलुदयमक्कुमल्लि समुद्घातकेवलियोळु नामबंधमिल्ल । सत्वं तीर्थयुतंगळप्पशीतियुमष्टसप्ततियुमप्पुवु । उदय २१ । ती। बं । ०। स ८०। ७८॥ नारकरोछु रत्नप्रभादित्रितयदोळु नारकानुपूज्युतकविंशतिस्थानोदयमिथ्या दृष्टियोळ उ २१ । बं २९ । पं । ति । म ३० । ति । उ। स ९२ । ९१ । ९०॥ १५ सत्त्वं द्वानवतिकं नवतिकत्रयमशीतिकमष्टसप्ततिकं च । नवकेऽष्टके च बन्धो नहि सत्त्वं क्रमेणाशीतिकादिषटके समविषमाणि । विशतिकं वितीर्थसमुदवाते तत्र न नाम बन्धः । सत्त्वं नवसप्ताग्रसप्ततिके द्वे । एकविंशतिकं सतीर्थप्रतरद्वयलोकरणे तत्रापि न नाम बन्धः । सत्त्वं दशाष्टाग्रसप्ततिके द्वे, सानुपूव्यं चतुर्गतिविग्रहगती । तत्र नारकेषु धर्मादित्रये मिथ्यादृष्टी उ २१ ब २९ पं, ति, म, ३० ति, उ, स, ९२, ९१, ९० । न सासादनमिश्रयोः । असंयते धर्मायामेव २० wwwwwwwwwwwwwwwwwwwww सत्त्व बानबे, नब्बे आदि तीन, अस्सी और अठहत्तर इस प्रकार छहका है। नौ और आठके उदय में बन्ध नहीं है । सत्त्व क्रमसे अस्सी आदि छहमें-से समरूप अर्थात् अस्सी और अठहत्तर नौमें और विषमरूप उन्यासी, सतहत्तर आठमें जानने ।।७५२।। आगे इनका विस्तारसे कथन करते हैं बोसका उदय तीर्थंकर रहित सामान्य केवलीके समुद्घातमें होता है वहाँ बन्धका २५ अभाव है। सत्त्व उन्यासी, सतहत्तरका है। इक्कीसका उदय तीर्थकर केवलीके प्रतरके विस्तार संकोचमें तथा लोकपूरणमें होता है। वहाँ भी बन्ध नहीं है। सत्त्व अस्सी और अठहत्तर दो हैं। _ आनुपूर्वी सहित इक्कीसका उदय चारों गतिके विग्रहगति कालमें होता है। उसमें नरकगतिमें धर्मादि तीनमें मिथ्यादृष्टि में इक्कीसके उदयमें बन्ध पंचेन्द्रिय तिर्यच या मनुष्य ३० सहित उनतीसका अथवा तिथंच उद्योत सहित तीसका है। सत्त्व बानबे, इक्यानबे, नब्बेका है। सासादन और मिश्रमें इक्कीसका उदय नहीं होता। असंयतमें धर्मामें ही इक्कीसका उदय है । वहाँ बन्ध मनुष्यगति सहित उनतीसका या तीर्थ सहित तीसका है। सत्त्व बानबे, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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