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________________ ९९८ गो० कर्मकाण्डे दसयादिसु बंधंसा इगितियतिय छक्क चारिसत्तं च । पण पण तिय पण दुग पणमिगितिग दुग छच्चऊ णवयं ॥६६५॥ दशादिषु बंधांशाः एक त्रिकत्रिकषट्कचतुः सप्त पंच पंच त्रिक पंच द्विक पंच एक त्रिक द्विक षट चत्वारि नवकं॥ ५ उदयस्थानाधिकरणदोलु वशाधुदयस्थानंगळो आदेयभूतबंधसत्वंगळु एक त्रिक, त्रिषट्कमुं चतुः सप्तक, पंच पंचकंगळं त्रिपंचकंगळु द्विपंचकंगळं एकत्रिकमुं द्विषट्कमु चतुर्नव. बंधसत्त्वस्थानसंख्येगळु क्रमदिवप्पुवु। संदृष्टि : | उ १०।९।८।७।६। ।४ | २|१| बं | १ | ३ | ४ | ५ |३|२|१| २ ४ स | ३ | ६ | ७ | ५ | ५ | ५ | ३ । ६ | ९| अनंतरमादेयभूतबंधसत्त्वसंख्याविषयस्थानंगळं पेळ्दपरु : पढमं पढमतिचउपण सत्तरतिगचदुसु बंधयं कमसो। पढमति छस्सगमडचउतिदुइगि बीसस्सयं दोसु ॥६६६॥ प्रथमं प्रथमत्रिचतुःपंचसप्तदशत्रिक चतुषु बंधकं क्रमशः। प्रथमत्रिषट्सनाष्ट चतुस्त्रिद्वयकविशतिर्द्वयोः॥ प्रथमं द्वाविंशति प्रकृतिबंधस्थानमोदक्कुं। नवादि चतुरुदयस्थानंगळोळ क्रमदिदं बंधस्था. नंगळु प्रथमावि त्रिस्थानंगळं प्रथमादिचतुःस्थानंगळं प्रथमादिपंचस्थानंगळं सप्तदशादित्रिस्थानंग१५ कुमप्पुवु । सत्वस्थानंगळुमल्लि क्रमदिदं प्रयमत्रिस्थानंगळं प्रथमषट्स्थानंगळु प्रथमसप्तस्थानंगळु अष्टचतुस्त्रिद्वयेकविंश त्यंशंगळमेरडेड़योळप्पुवु ॥ __ उदयस्थानेषु दशकादिषु क्रमेण बन्धसत्त्वस्थानानि एकत्रिकं त्रिकषट्कं चतुःसप्तकं पंचपंचकं त्रिपंचकं द्विपंचकं एकत्रिकं द्विषट्कं चतुर्नवकं ॥६६५।। तानि कानोति चेदाह दशकादिषु पंचसु क्रमेण बन्धस्थानानि द्वाविंशतिक, तदादित्रयं तदादिचतुष्कं तदादिपंचक सप्त० दशकादित्रयं च भवन्ति । सत्त्वस्थानान्यष्टाविंशतिकादित्रयं तदादिषट्कं तदादिसप्तकं अष्टचतुस्त्रिद्वयेकानविंश दस आदि नदयस्थानों में क्रमसे बन्धस्थान और सत्त्वस्थान एक तीन, तीन छह, चार सात, पाँच-पाँच, तीन पाँच, दो पाँच, एक तीन, दो छह और चार नौ होते हैं ॥६६५।। वे कौनसे हैं, यह कहते हैं दस आदि पाँच उदय स्थानों में-से पहलेमें बन्धस्थान बाईसका होता है अर्थात् जिस २५ जीवके जिस कालमें दसका उदय होता है उसके उस कालमें बाईसका ही बन्ध है। इसी प्रकार सर्वत्र जानना। दूसरेमें बन्धस्थान बाईस आदि तीन हैं। तीसरे में बाईस आदि चार हैं। चौथेमें बाईस आदि पाँच हैं। पाँचवेंमें सतरह आदि तीन हैं। सत्त्वस्थान पहले उदयस्थानमें अठाईस आदि तीन हैं। अर्थात् जिस समय दसका उदय है उस समय किसीके अठाईसका, किसीके सत्ताईसका और किसीके छब्बीसका सत्त्व पाया जाता है। ३० दूसरे में अठाईस आदि छहका सत्त्व है। तीसरेमें अठाईस आदि सातका सत्त्व है। चौथे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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