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________________ ९४२ १० गो० कर्मकाण्डे अनंतरमयोगिक्रेवलिय नामस्थानद्वयक्कुपपत्तियं पेवपरु :गयजोगस्स य बारे तदियाउगगोद इदि विहीणेसु । नामस्स य व उदया अट्ठेव य तित्थहीणेस ||५९८ ।। तयोगिनो द्वादशसु तृतीयायुग्गोत्रमिति विहोनेषु । नाम्नो नवोदया अष्टैव च तोत्थंहीनेषु ॥ अयोगकेवलि भट्टारकनुदयप्रकृतिगळु पर्नरडरोळ वेदनीयायुग्गश्रत्रयमं कळबोर्ड नामकर्म्मप्रकृतिगळु नवप्रमितंगळप्पुवु । ९ । तीत्थं रहितरोळे टे प्रकृतिगळवु । ८ ॥ अयोगकेवलिनः द्वादशोदय प्रकृतिषु वेदनीयायुर्गोत्रे ऽपनीतेषु नाम्नो नव भवन्ति । पुनः तीर्थेऽपनीतेऽष्टौ भवन्ति ।। ५९८ ।। अथ नामोदयस्थानेषु भंगानाह छब्बीसके स्थान तीन ॥ ३ ॥ एकेन्द्रिय के शरीर पर्याप्ति काल में ||२६|| एकेन्द्रियके उच्छ्वास पर्याप्ति काल में ||२६|| दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, सामान्य मनुष्य, निरतिशय केवलीके औदारिक मिश्रकालमें उदययोग्य ||२६|| १५ सत्ताईसके स्थान चार ||४|| आहारक शरीर पर्याप्ति में उदययोग्य ॥२७॥ तीर्थंकर समु. केवलीके उदययोग्य ||२७|| देव नारकीके शरीर पर्याप्तिकाल में ||२७|| एकेन्द्रियके उच्छ्वास पर्याप्ति में ||२७|| २० अठाईसके स्थान तीन ॥३॥ सामान्य मनुष्य, सामान्य केवली, दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रियके शरीर पर्याप्ति में उदययोग्य ||२८|| आहारक में उच्छ्वास पर्याप्ति में उ. ॥ ८२ ॥ २५ देव नारकी के उच्छ्वास पर्याप्तिमैं ||२८|| उनतीसके स्थान छह ॥ ६ ॥ समुद्घातकेवलीके उच्छ्वास पर्याप्ति में ||२९|| Jain Education International दोइन्द्रिय आदिके शरीर पर्याप्ति में ||२९|| दोइन्द्रिय आदिके उच्छ्वास पर्याप्ति में ||२९|| समुद्घात तीर्थंकर के शरीर पर्याप्ति में ||२९|| आहारक शरीरके भाषा पर्याप्ति में ||२९| देव नारकीके भाषा पर्याप्ति में ||२९|| तीसके स्थान चार ||४|| दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रियके उच्छ्वास पर्याप्ति में ||३०|| सामान्य मनुष्य, पंचेन्द्रिय, विकलत्रयके भाषा पर्याप्ति में ||३०|| तीर्थं. समु. केवली उच्छ्वास पर्याप्ति में ||३०|| सामान्य समु. केवलीके भाषा पर्याप्ति में उदय ||३०|| एकतीस के स्थान दो ॥२॥ तीर्थंकर केवली भाषा पर्याप्ति में ॥ ३१ ॥ दोइन्द्रिय, आदि पंचेन्द्रिय के भाषा पर्याप्ति में ||३१|| नौका स्थान एक || १॥ अयोग केवली के आठका स्थान एक || १॥ अयोग केवलीके अयोग केवलीके उदय प्रकृतियाँ बारह हैं। उनमें से वेदनीय, आयु, गोत्र तीन प्रकृतियाँ घटानेपर नामकर्मका नौ प्रकृतिरूप उदय स्थान होता है । और तीर्थकर बिना आठका ३० उदयस्थान होता है ।।५९८|| For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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