________________
९३६
गो० कर्मकाण्डे प्रकृतिगळोळु त्रसौदारिकशरीरविवक्षयादोडौदारिकांगोपांगं संहननं सहितमावोर्ड द्वौद्रियत्रींद्रियचतुरिद्रिय पंचेंद्रियंगळ्गे शरीरमिथकालदोळु षड्विंशतिप्रकृतिस्थानोदयमक्कुं। २६ । बि । ति । च।प। मिश्र । मत्तमा चतुविशतिप्रकृतिगळोळु मनुष्यगति विवक्षितमादोडयुमंगोपांगसंहनन
युतमागि सामान्यमनुष्यसंसारिजोवनशरीरमिश्रदोळं निरतिशयकेवलिकवाटसमुद्घातद्वयवोवारिक५ शरीरमिश्रदोळं षड्विंशतिप्रकृतिस्थानोदयमक्कुं । २६ । सा । म । सा के । औ। मिश्र। मत्तमा
चतुविशतिप्रकृतिगळोळु आहारकशरीरं विवक्षितमादोडे अंगोपांगपरघातप्रशस्तविहायोगतिगळं कूडिदोडे आहारकशरीरपर्याप्तप्रमत्तनोळ सप्तविंशतिप्रकृतिस्थानोदयमक्कुं । २७ । प्र । आ. शप। मतमा सामान्यकेवलिय औदारिकमिध षड्विंशतिप्रकृतिगळोळ तीर्थयुतमावुवावोडमा कवाटय
समुद्घातविशेषमनुष्यौवारिकमिधदोळं सप्तविंशतिप्रकृतिस्थानोदयमक्कुं। २७। ती के । श.मि । १० मतमा चतुविशतिप्रकृतिगळोळु नरकसुरगतिगळु विवक्षितमावोर्ड वैक्रियिकांगोपांगपरघाता
विरुद्धविहायोगतियुतमादोर्ड देवनारकशरीरपर्याप्तियोळ सप्तविंशतिप्रकृतिस्थानोवयमक्कुं २७ । दे। ना। श. परि। मत्तमा चतुविशतिप्रकृतिगळोळ एकेंद्रियजातिनाममुं विवक्षितमादोर्ड परघातमुमातपमुं मेणुद्योतमुमुच्छ्वासमुं युतमागि एकेंद्रियोच्छ्वासनिश्वासपर्याप्तियोल सप्तविंशति
प्रकृतिस्थानोदयमक्कं । २७ । ए उ. प। मत्तमा चतुविशतिप्रकृतिगलोळु मनुष्यगतिविवक्षितमा१५ दोडे. अंगोपांगसंहननपरघाताविरुद्धविहायोगतियुतमागि सामान्यमनुष्यशरीरपर्याप्तियोळ अष्टा
विंशतिप्रकृतिस्थानोदयमक्कं । २८ । सा । म । श । परि। मूलशरीरप्रविष्टसमुद्घातसामान्य.
सनिःश्वासपर्याप्ती उच्छ्वासे युते इदं २६ । वा चतुविशतिके द्वित्रिचतुष्पंचेन्द्रियाणां सामान्यमनुष्यस्य निरतिशयकेवलिकवाटद्वयस्य च औदारिकमिश्रकाले तदंगोपांगसंहनने युते इदं २६ ।
तत्रवाहारकांगोपांगपरपातप्रशस्तविहायोगत्याहारकशरीरपर्याप्तिप्रमते इदं २७। सामान्य केवल्यो२. दारिकमिश्रषड्विंशतिके तीर्थे युते कवाटद्वयसमुद्घातविशेषमनुष्यौदारिकमिश्रे इदं २७ । पुनः चतुविशतिके
प्रमत्तस्य शरीरपर्याप्ती वैक्रियिकांगोपांगपरघाताविरुद्धविहायोगतिषु युतास्विदं । २७ । वा तत्रैवैकेन्द्रिय
२५
स्थानमें श्वासोच्छवास मिलानेपर एकेन्द्रियके उच्छ्वास निःश्वास पर्याप्तिमें उदय योग्य छब्बीसका स्थान होता है । अथवा चौबीसके स्थानमें औदारिक अंगोपांग और एक संहनन मिलानेपर दो-इन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, पंचेन्द्रिय, सामान्य मनुष्य, निरतिशय केवलीका कपाटयुगल, इनके औदारिक मिश्रकालमें उदय योग्य छब्बीसका स्थान होता है। इस प्रकार छब्बीसके तीन स्थान हुए।
चौबीसके स्थानमें आहारक अंगोपांग, परघात, प्रशस्त विहायोगति ये तीन मिलानेपर प्रमत्त गुणस्थानीके आहारक शरीर पर्याप्तिकालमें उदययोग्य सत्ताईसका स्थान होता है। अथवा पूर्वोक्त समुद्घातगत केवलीके छब्बीसके स्थानमें तीर्थकर प्रकृति मिलनेपर तीर्थकर समुद्घात केवलीके उदय योग्य सत्ताईसका स्थान होता है। अथवा पूर्वोक्त चौबीसके स्थानमें वैक्रियिक अंगोपांग, परघात तथा नारकीके अप्रशस्त विहायोगति और देवके प्रशस्त विहायोगति ये तीन मिलनेपर देव नारकीके शरीर पर्याप्तिकालमें उदय योग्य सत्ताईसका स्थान होता है। अथवा पूर्वोक्त चौबीसके स्थानमें परघात, और आतप उद्योतमें से एक
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org