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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका अनंतरं भुजाकाराल्पतरादि भंगंगळं मिथ्यादृष्टिगे लघुकरणदिदं पेळ्दपरु :
लहुकरणं इच्छंतो एयारादीहि उवरिमं जोग्गं ।
संगुणिदे भुजगारा उवरीदो होति अप्पदरा ॥५७०॥ लघुकरणमिच्छत एकादशादिभिरुपरिमं योगं, संगुणिते भुजाकारा उपरितो भवंत्यल्पतराः॥
मिथ्यादृष्टिय भुजाकारबंधभंगंगळुमनल्पतरबंधभंगंगनुमंतरल्पडुवल्लि लघुकरणमनिच्छ- ५ यिपंगे एकादशाद्यंकंगळिदमुपरिमांकंगळ योगमं संगुणं माडुत्तिरलु भुजाकारबंधभंगंगळप्पुवु । मेगणिदं केळगण अंकयोगमं संगुणं माडुत्तं विरलल्पतरबंधभंगंगळुमप्पुवु । अदेते दोडे संदृष्टि : ३०४६४० यिल्लि त्रयोविंशतिप्रकृतिस्थानभंगंगळेकादश प्रमितंगळप्पुववर मेगण सप्तत्याधुकंगळ२९९२४८ २६ ३२ २५/ ७० २३ ११
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इयत्प्रमाणका अल्पतरभंगाः सर्वे ॥५६९।। अथ भुजाकाराल्पतरादिभंगान् मिथ्यादृष्टेलघुकरणेनाह
लघुकरणमिच्छन् एकादशााकैरुपरितनांकयोगे संगुणिते भुजाकारबन्धभंगा भवन्ति । तद्यथा १० संदृष्टिः
३० । ४६४० २९ ९२४८ २८ ।
२६ ।
२३ ।
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छब्बीसका बन्ध करके पश्चात् पचीस आदिका बन्ध करनेपर अल्पतर होता है । सो छब्बीसके एक भेदका बन्ध करके पचीस-तेईसके सब भेदोंको बाँधे तो छब्बीसके बत्तीस भेदोंके द्वारा कितने बन्धके भेद होंगे। इस तरह यहाँ दो राशिक करना। उनमें सर्वत्र प्रमाणराशि छब्बीसका एक भेद, फलराशि क्रमसे पचीसके सत्तर और तेईसके ग्यारह भेद। १५ इच्छाराशि सर्वत्र छब्बीसके बत्तीस भेद । फलराशिके जोड़ इक्यासीको इच्छाराशि बत्तीससे गणा करनेपर पचीस सौ बानब हुए। इतने छब्बीसके अल्पतर है।
पचीसको बाँधकर तेईस बाँधनेपर अल्पतर होता है। सो पचीसके एक भेदको • बाँधकर तेईसके ग्यारह भेदोंको बाँधे तो पचोसके सत्तर भेदोंके द्वारा कितने बन्धके भेद होंगे। यहाँ एक ही राशिक है। उसमें प्रमाणराशि पचीसका एक भेद । फलराशि तेईसके २० ग्यारह भेद । इच्छाराशि पचीसके सत्तर भेद । सो फल ग्यारहको इच्छा सत्तरसे गुणा करनेपर सात सौ सत्तर हुए। इतने पचीसके अल्पतर जानना ॥५६९।।
आगे मिथ्यादृष्टि के मुजाकार अल्पतर आदि भंगोंको लघु प्रक्रियाके द्वारा कहते हैं
थोड़ेमें जानने की इच्छावालेको ग्यारह आदि अंकोंके द्वारा ऊपरके अंकोंके जोड़को गुणा करनेपर भुजाकार होते हैं। सो सत्तर, बत्तीस, नौ, बानबेसौ अड़तालीस, छियालीस २५
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