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________________ गो० कर्मकाण्डे योदयमक्कुं ॥ सासावननोळु मिथ्यात्वोदयरहितमागि अनंतानुबंध्य प्रत्याख्यान प्रत्याख्यान संज्वलनसर्व्वघाति क्रोधमानमायालोभचतुष्टयोदयमक्कुं ॥ मिधनोळु मिथ्यात्वानंतानुबंधिकषायरहिताप्रत्याख्यानप्रत्याख्यान संज्वलन सर्व्वंघातिक्रोधत्रितयादि कषायचतुष्टयोदयमुं जात्यंतर सधंघाति दर्शनमोह सम्यग्मिथ्यात्वप्रकृत्युदय मुमक्कुं ॥ असंयत सम्यग्दृष्टियोलु मिथ्यात्वानं तानुबंधि ५ कषायोदय रहितमागि दर्शनमोहक्षयोपशमदोळाद देशघातिसम्यक्त्व प्रकृत्युदय बोडनप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान संज्वलनसर्व्वधातिक्रोधत्रितयादिकषाय चतुष्कोदयमुं मेणु वर्शन मोहोपशमनमुं क्षयमुमप्रत्याख्यान प्रत्याख्यान संज्वलनसयंघातिक्रोधत्रिययादि चतुः कषायोदयमुमक्कुं । तिप्यग्वेश संयतनोळु मिथ्यात्वानंतानुबंधि अप्रत्याख्यानरहितमागि दर्शनमोहक्षयोपशमवेशघातिसम्यक्त्वप्रकृत्यु - वयमुं प्रत्याख्यान संज्वलनसर्व्वघातिक्रोधद्वितयादि चतुः कषायोदयमुं मेणु दर्शनमोहोपशमयुत १० प्रत्याख्यान संज्वलन सर्व्वघातिक्रोधद्वयादि चतुष्कषायोदयमुमक्कुमादोडमी तिथ्यंग्देशसंयतनोळ संक्लेशहानियोळाव शुभलेश्यान्त्रयकारणंगळप्प कषायोदयस्थानं गळ संख्यातेक भागमात्रं गळागियुमसंख्यात लोकमात्रंगळप्पुवु । ई साधनंगळिनुपलक्षिसल्पट्ट षड्लेश्यो वयस्थानंगळ मिध्यावृष्टियोळं सासादननोळं मिश्रनोळमसंयतनोळमध्वा पर्याप्ततिर्यंच सामान्य मिध्यादृष्टियोळ यथायोग्यं नामकर्म्मबंघस्थानंगळोळु त्रयोविंशत्यादिषट्स्थानंगळु बंघमप्पुवु । २३ । ए अ । २५ । ८६४ १५ पेक्षया तज्जघन्यानामष्टांकत्वात् । तत्तिर्यग्मिथ्यादृष्टो मिथ्यात्वेन सहानंतानुबंध्यादिसर्वधातिक्रोध चतुष्कं वा मानचतुष्कं वा माया चतुष्कं वा लोभचतुष्कमुदेति । सासादने तदेव बिना मिथ्यात्वं । मिश्र पुनरनंतानुबंध्यूनं तं जात्यंतर सर्वघातिसम्यग्मिथ्यात्वेन । असंयते सम्यग्मिथ्यात्वोनं दर्शनमोहस्य क्षयोपशमे युतं देशघातिसम्यक्त्वप्रकृत्या वियुतमुपशमे क्षये च । देशसंयते पुनरप्रत्याख्यानोनं युतं दर्शनमोहस्य क्षयोपशमे तथा वियुतमुपशमे तथापि तिर्यग्देशसंयते संक्लेशहानी जातानि (त्रिशुभ - ) लेश्या कारणकषायोदयस्थानान्यसंख्यातै कभागत्वेऽप्यसंख्या२० तलोकमात्राणि शेषबहुभागाः षड्लेश्योदयस्थानानि मिध्यादृष्ट्यादिचतुष्के भवंति । तत्र मिथ्यादृष्टी त्रयो तियंच मिध्यादृष्टि में मिध्यात्वके साथ अनन्तानुबन्धी आदि सर्वघाती क्रोधचतुष्क, मानचतुष्क, मायाचतुष्क अथवा लोभचतुष्कका उदय होता है । सासादनमें मिथ्यात्व के बिना अनन्तानुबन्धी चतुष्कों का उदय होता है । मिश्रमें अनन्तानुबन्धी बिना जात्यन्तर सर्वघाती सम्यग्मिथ्यात्व के साथ कषायका उदय होता है। असंयत में सम्यग्२५ मिथ्यात्व के बिना दर्शनमोहके क्षयोपशम में देशघाती सम्यक्त्व प्रकृतिके साथ और दर्शन मोहके उपशम और क्षयमें सम्यक्त्व मोहनीयके बिना कषायका उदय होता है। देशसंयत में अप्रत्याख्यान रहित तथा दर्शनमोहके क्षयोपशम में सम्यक्त्व मोहनीय सहित और उपशममें उससे रहित उदय होता है । किन्तु तिथंच देशसंयत में संक्लेशकी हानिसे हुए तीन शुभ लेश्याओंके कारण कषायोंके उदयस्थान सब कषायके उदयस्थानोंके असंख्यातवें भाग प्रमाण होनेपर भी असंख्यात लोक प्रमाण हैं। शेष बहुभाग प्रमाण कषायोंके उदयस्थान, जो छह लेश्याओंके कारण हैं, मिथ्यादृष्टि आदि चार गुणस्थानों में होते हैं । ३० मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें तेईस आदि छह स्थान बँधते हैं । सासादनमें अठाईस आदि तीन बँधते हैं। मिश्र आदि तीन गुणस्थानों में एक अट्ठाईसका ही स्थान बँधता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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