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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका णामोदय संपादिद सरीरवण्णो दु दव्त्रदो लेस्सा । मोहुदखओवसमोवस मक्खयजजीवफंदणं भाओ ॥ र्य'दिंतु मोहोदय मोह्क्षयोपशम मोहोपशम मोहक्षयज जीवस्पंदन लक्षण भावलेइये विवक्षिसल्पदुदु । वर्णनामकम्र्मोदयजनित शरीरवर्णमविवक्षितमपुर्दारदमी भावलेश्य यशुभलेश्यात्रयमेंदु शुभलेश्यात्रयदित्र्त्तरनप्पुदल्लि कृष्णनीलकपोतभेद दिदमित शुभलेश त्रिविधमक्कुं । तेजः पद्मशुक्ल लेश्याभेददिदं शुभलेश्येयुं त्रिविधमवकुम संयतांतच तुग्र्गुणस्थानंगळोळार लेश्येगळं देशविरतत्रयवो शुभलेश्यात्रयमुमपूथ्वं करणादिषट्स्थानं गळोळ शुक्लश्येयक्कुम पुर्वारंदं नारकरोळं तिथ्यंचरोळं मनुष्यरोळं देवषर्कळोळमसंयतांत चतुर्गुणस्थानंगळोळं कृष्णनीलकपोतंगळु संभविसु मल्लि नारकरोळ 'काऊ काऊ तह काऊ णीळणीळा य णीळ किव्हा य । किन्हा य परमकिव्हा ळेस्सा पढमादिपुढवीणं ॥” एंवितु प्रथमनरकदोळु सीमंत । नरक । रौरव । भ्रांत । १० उद्भ्रांत । संभ्रांत । तप्त । असंभ्रांत । विभ्रांत । त्रसित । वक्रांत । अवक्रांत । विक्रांत में दितु पदिरिद्र कंगळवु । १३ ॥ द्वितीयपृथ्वियोळु ततक । स्तनक | वनक । मनक | खडा । खडिग । जिह्वा । जिह्विका । लोलिक । लोलवत्स । स्तनलोले ये दितु पन्नों विद्रकंगळप्पु । ११ ॥ तृतीयनरकबो तप्त । तपित । तपन | तान । दाघ । उज्वलित । प्रज्वलित । संज्वलित । संप्रज्वलितमें 'दितिंद्रकनवकमक्कुं । ९ ॥ चतुर्त्यनरकदोळ आरा। मारा । तारा। चर्चा । तमकी | घाटा । १५ घटा एंदिवे मित्र कंगळवु । ७ ॥ पंचमनरकदो तमका । भ्रमका । झषक । अंधेंद्रक | तिमिश्र एंविदिद्रकंगळवु । ५ ॥ षष्ठनरकदोळ हिम । वद्दल | लल्लकि यदितिवु मुद्रिकंगळcg | ३ ॥ सप्तमनरकदो अवधिस्थानमें बुदो दे द्रिकमप्पु । १ । ८५१ प्रथम नरक सीमंतेंद्रकोळ कपोतलेश्याजघन्यमक्कु । मुत्कृष्टं तृतीयनरकद संज्वलि - तेंद्रकदोळक्कुं । नीललेश्याजघन्यमदर केळगण संप्रज्वलितेंद्रकदोळक्कुं । तदुत्कृष्ट पंचमनरक - २० Jain Education International ५ पद्मलेश्यायामष्टाविंशतिकादीनि चत्वारि । शुक्ललेश्यायामवधिज्ञानवच्चरमाणि पंच । वर्णनामोदय संपादितशरीरवर्णो द्रव्यलेश्या सा नात्र विवक्षिता । मोहोदयोपशमक्षपक्षयोपशमजनितजीवस्पंदनं भावलेश्या, साव कृष्णादिभेदेन षोढा । प्रथमनरकप्रथमेंद्र के कपोतजघन्यांशः । तृतीयनरकद्विच रमेंद्र के तदुत्कृष्टांशः । तच्चरमेंद्र के नीलजघन्यांशः । पंचमनरकद्विचरमेंद्र के तदुत्कृष्टांशः । तच्चरमेंद्र के कृष्णजघन्यांशः । सप्तमनरकावधिस्थानेंद्र के तदुत्कृष्टांशः । तयोस्तयोर्मध्ये स्वस्वमध्यमांशो भवति । तत्रोत्पत्तियोग्यमिध्यादृष्टिजीवाः घर्मायां कर्मभूमिषट्- २५ वर्णनाम कर्मके उदयसे उत्पन्न शरीरका वर्ण द्रव्यलेश्या है उसकी यहाँ विवक्षा नहीं है। मोहके उदय, उपशम, क्षय या क्षयोपशमसे उत्पन्न जीवकी चंचलता भावलेश्या है । वह कृष्ण आदिके भेदसे छह प्रकारकी है। प्रथम नरकके प्रथम इन्द्रकमें कपोत लेश्याका जघन्य अंश है । तीसरे नरकके द्विचरम इन्द्रकमें कपोतका उत्कृष्ट ३० अंश है। तीसरे नरकके अन्तिम इन्द्रकमें नीलका जघन्य अंश है। पंचम नरकके द्विचरम इन्द्रकमें नीलका उत्कृष्ट अंश है। पंचम नरकके अन्तिम इन्द्रकमें कृष्णका जघन्य अंश है । सप्तम नरकके अवधिस्थान इन्द्रकमें कृष्णका उत्कृष्ट अंश है । इन जघन्य उत्कृष्ट For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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