SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 20
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६४८ गो० कर्मकाण्डे उदयव्युच्छित्तिळिदं मुन्नं बंधन्युच्छित्तिगळप्प प्रकृतिगळावुवुवेंदोडे उदयव्युच्छित्तिर्गाळ बलियक बंधव्युच्छितिप्रकृतिगळुमं समंगळुमं पेन्दु पारिशेषिकन्यादिद मग्भोंदु ८१ प्रकृतिगळप्पुर्वेदु गाथाद्वयदिदं पेळदपरु : देवचउक्काहारदुगज्जसदेवाउगाण सो पच्छा । मिच्छत्तादावाणं णराणुथावरचउक्काणं ॥४०॥ देवचतुष्काहारद्विकायशस्कोत्तिदेवायुषां स पश्चात् मिथ्यात्वातपयोन्नरानुपूर्व्यस्थावरचतुष्काणां॥ पण्णरकषायमयदुगहस्सदु चउजाइपुरिमवेदाणं । सममेक्कत्तीसाणं सेसिगिसीदाण पुव्वं तु ॥४०१॥ पंचदशकषायभयद्विकहास्यद्विक वतुर्जातीनां सममेकत्रिंशतां शेषैकाशीतीनां पूर्व तु ॥ उदयदिदं मुन्नं बंधव्युच्छित्तिप्रकृतिगळु एभत्तोंदु ८१ । उदयव्युच्छित्तियिदं बळिक्कं बंधन्युच्छित्तिप्रकृतिगळेदु ८ । उदयदोडने बंधव्युच्छित्तिप्रकृतिगळु मूवत्तोंदु ३१ कूडि नूरिप्पत्तप्पुववावुर्व दोडे देवचतुष्कमुमाहारद्विकमुमयशस्कोत्तियं देवायुष्यभुम बटुं प्रकृतिगळगे उदय. व्युच्छित्तियिदं बळिक्कं बंधव्युच्छित्तियक्कुं। संदृष्टि : २। १ । १ १५ पुनः निरंतरः सांतरः उभयरूपः कः? इति नव प्रश्ना भवंति ॥३९९॥ तत्राद्यप्रश्नत्रयप्रकृतीयाद्वयेनाह देवचतुषामाहारकद्विकमयशस्कोतिर्देवायुरित्यष्टानामुदयव्युच्छित्तेः पश्चाबंधव्युच्छित्तिः । तथाहिदेवचतुष्कस्यासंयते उदयव्युच्छित्तिः, अपूर्वकरणषष्ठभागे बंधव्युच्छित्तिः । आहारकद्वयस्य प्रमत्ते उदयव्युच्छित्तिः, उदय व्युच्छित्ति के साथ बन्ध व्युच्छित्ति किन प्रकृतियोंकी होती है। ये तीन प्रश्न हए। अपना उदय होते हुए जिनका बन्ध होता है वे प्रकृतियाँ कौन हैं ? अन्य प्रकृतियोंके उदयमें जो बँधती हैं वे प्रकृतियाँ कौन हैं ? तथा जिनका बन्ध अपने भी उदयमें होता है और अन्य प्रकृतियों के उदयमें भी होता है वे प्रकृतियाँ कौन हैं ? ये तीन प्रश्न हुए। जिनका निरन्तर बन्ध होता है वे प्रकृतियाँ कौन हैं ? जिनका सान्तर बन्ध होता है कभी होता है कभी नहीं होता, वे कौन है ? जिनका सान्तर-निरन्तर दोनों प्रकारका बन्ध होता है वे प्रकृतियाँ कौन हैं ? तीन प्रश्न ये हुए । सब नौ प्रश्न हुए ॥३९९।। २५ प्रथम तीन प्रश्नोंकी प्रकृतियाँ दो गाथाओंसे कहते हैं-.. देवगति, देवानुपूर्वी, वैक्रियिक शरीर व अंगोपांग ये देवचतुष्क, आहारक शरीर व अंगोपांग, अयशःकीर्ति, देवायु इन आठ प्रकृतियोंकी उदय व्युच्छित्तिके पीछे बन्ध व्युच्छित्ति होती है। वही कहते हैं देव चतुष्ककी उदय व्युच्छित्ति असंयत गुणस्थानमें होती है और अपूर्वकरणके छठे ३० भागमें बन्ध व्युच्छित्ति होती है। आहारकद्विक की उदयव्युच्छित्ति प्रमत्तमें और बन्धव्युच्छित्ति अपूर्वकरणके षष्ठ भागमें होती है । अयशःकीर्तिकी असंयतमें उदय व्युच्छित्ति होती है और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy