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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका मागि संज्वलनदेशघातिकषायोदयं यथाख्यात चारित्रप्रतिघातियक्कु । मी शक्ति साधारणविवक्षयदं षोडशकषायंगळर्गे जात्याश्रयण क्रोधमानमायाळोभ साधारण चतुव्विधत्वमंगोक रिसल्पट्टुपुर्दारद सम्यक्त्वसंयमासंयमसकलसंयमंगलाऽसंयत देशसंयत प्रमत्तसंयतादिगळोळ संभवं सिद्धमक्कु । मनंतानुबंधिकषायचतुष्टयशक्तियोडनित रकषायशक्तिसमानर्म' तक्कुर्मदोर्ड आवरणदेसघादंतराय संजळण पुरिस सत्तरसं । चविह भावपरिणदा तिविहा भावा हु सेसाणं ॥ देशघात ज्ञानावरणचतुष्क दर्शनावरणत्रय अंतराय पंचक संज्वलन चतुष्क पुंवेदमें ब सप्तदशप्रकृतिगळु चतुविधानुभागपरिणतंगळु शेषमिश्रोन केवळणाणावरणं दंसगछक्कमित्यादिविंशति सघातिगळं नोकषायाष्टकमुं पंचसप्तत्यघातिगळं त्रिविध भावपरिणतंगळप्पुवु । ये दितु मिथ्यात्वमनंतानुबंधिचतुष्कम प्रत्याख्यानचतुष्कं प्रत्याख्यानचतुष्कं संज्वलनचतुष्क सव्र्व्वधातिशक्तियुं १० समानमक्कुमवक्के संदृष्टि - ८२७ भेदेन चतुर्षात्वमंगीकृतं तेन सम्यक्त्वदेशसंयम सकलसंयमान असंयतदेशसंयतप्रमत्तादिषु संभवः सिद्धः । कथमनं तानु बंघिशक्त्येतरकषायशक्ते सादृश्यं उच्यते ? आवरणदेसघादंतरायसं जलणपुरिससत्तरसं । चदुविधभावपरिणदा तिविहा भावा हु से साणं ||१|| देशघातिचतुस्त्रिज्ञान दर्शनावरणपंचांतरायचतुः संज्वलनपुंवेदाः सप्तदशापि चतुर्षानुभागपरिणताः १५ शैषमिश्रोन केवलज्ञानावरणादिसर्व घातिविंशतिः नोकषायाष्टकमघातिपंचसप्ततिश्च त्रिधा भावपरिणता भवंति । दृष्टि: है । इस प्रकार शक्ति सामान्यकी विवक्षासे सोलह कषायको क्रोधादिके भेदसे चार प्रकारका स्वीकार किया है । इससे सम्यक्त्व, देशसंयम और सकलसंयमका असंयत, देशसंयत, प्रमत्त आदि में होना सिद्ध होता है । शंका- अनन्तानुबन्धी शक्ति और अन्य कषायोंकी शक्ति में समानता कैसे होती है ? Jain Education International ५ For Private & Personal Use Only समाधान - पहले अनुभागबन्धके कथनमें कहा है कि देशघाती चार ज्ञानावरण, तीन दर्शनावरण, पाँच अन्तराय, चार संज्वलन, एक पुरुषवेद ये सतरह प्रकृतियाँ तो चार प्रकारके अनुभागरूप परिणमती हैं। शेष मिश्र मोहनीय बिना केवलज्ञानावरण आदि बीस, आठ नोकषाय, पिचहत्तर अघातिया ये तीन प्रकारके अनुभागरूप परिणमती हैं। अतः अनुभाग २५ शक्तिकी विशेषतासे अनन्तानुबन्धीकी तरह अन्य कषायके भी सम्यक्त्व आदिका घात करनेसे समानता होती है । सो मिध्यात्व सहित उदयप्राप्त कषाय सम्यक्त्वको घातती है । अनन्तानुबन्धीके साथ उद्यागत कषाय सम्यक्त्व और संयमको घातती है । अप्रत्याख्यानके साथ उद्यागत कषाय देशसंयम सकलसंयमको धातती है । प्रत्याख्यान सहित उदयागत कषाय सकलसंयमको घातती है । संज्वलनके देशघाती स्पर्धकोंका उदय यथाख्यातको ३० धाता है । इस तरह बारह कषाय सर्वघाती और संज्वलनोंमें कथंचित् भेद होनेपर भी शक्तिकी समानतासे और समान कार्य करनेसे क्रोधादिके भेदसे चार भेद जानना । २० www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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