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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्व प्रदीपिका जोवपदंगळेयप्पुवु । आहारपदमुं जीवपदमेयक्कुपर्व ते बोर्ड -अ - आहारकद्वयं देवगतिनामकम्मंदोडनल्लदन्यगतित्रितयदोडने नियर्मादिदं बंधमागदप्पुवरिदं तद्देवगत्यंतर्भावियक्कुं । पर्याप्तविशिष्टदेवगतिनाम मुमितु पर्याप्त विशिष्टनारकदेवगतिनामकम्र्मद्वयमुं २ ॥ तिथ्यंग्मनुष्यगतिद्वय पर्याप्तापर्याप्त विशिष्टचतुस्त्रिशत्कर्मपदंगळु ३४ । जीवपदं गळु मण्डु कूडि एकचत्वारिंशत्पदं गळवु १४१ | ई नात्वत्तों व पदंगळगे संदृष्टि कूडि षट्त्रिंशत्कम्मंपदंगळप्पुवु । केवलं प अ नि पृबा पू सू आबा | असू | ते। बा ते सू वा बावा सूसा बासासू प्र पृबा पू सू आबा असू ते बा ते सू वा बाबा सूसा बासा।सुप्र ० त्रीं त्रीं अ सं म च अ सं मं साकेत के सास के ति । स के Jain Education International o o अनंतरं नामकर्मप्रकृतिबंधस्थानंगळं पेवपरु : o o तेवीसं पणुवीसं छब्वीसं अट्ठवीसमुगुतीसं । तीसेक्aतीस मेवं एक्को बंधो दु सेढिम्मि ||५२१ ॥ अ ० For Private & Personal Use Only -: ७७७ २४ त्रयोविंशतिः पंचविंशतिः षड्विशतिरष्टाविंशतिरेकान्नत्रिशस्त्रिशदेकत्रिंशदेवमेको बंधो द्विश्रेण्यां ॥ १७ तद्विशिष्टचतुरिद्रियं तद्विशिष्टासंज्ञिपंचेंद्रियं तद्विशिष्टसंज्ञिपंचेंद्रियं मनुष्यगतिनामेमानि सप्तदशापि पर्याप्तनामविशिष्टानि पर्याप्तपदानि अपर्याप्तनामविशिष्टान्यपर्याप्तपदानि । चत्वारः केवलिनः केवलजीवपदानि आहारकमपि जीवपदं देवगति विनान्यगत्या सह बंधाभावात् तस्यामेव तदंतर्भावात् पर्याप्तविशिष्ट देव गतिनाम | नारदेवगती पदे तिर्यग्मनुष्य गत्योश्चतुस्त्रिशत्पदानि च कर्मपदानि केवलजीवपदानि पंच मिलित्वैकचत्वा रिशत् ।।५१९-५२० ॥ १० विशिष्ट असंज्ञी पंचेन्द्रिय, त्रसविशिष्ट संज्ञी पंचेन्द्रिय और मनुष्यगति नाम । ये सतरह भी पर्यातनाम विशिष्ट होने से पर्याप्तपद हैं और अपर्याप्तनाम विशिष्ट होनेसे अपर्याप्त पद हैं। ये चौंतीस हुए । सामान्य केवली, तीर्थंकर केवली, समुद्घातगत सामान्य केवली, समुद्घातगत तीर्थंकर केवली, ये चार केवली, ये केवल जीवपद हैं। आहारक भी जीवपद हैं; क्योंकि देवगतिके बिना अन्यगति के साथ उसका बन्ध नहीं होता । उसीमें उसका २० अन्तर्भाव होने से पर्याप्त देवगति नाम है । इस तरह नरक देवगति पद दो और तियंच मनुष्यगति चौंतीस पद ये छत्तीस कर्मपद हैं और केवल जीवपद पाँच हैं-चार केवली और आहारक । सब मिलकर इकतालीस पद हैं ।।५१९-५२०।। १५ www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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