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________________ गो० कर्मकाण्डे १०७१ ऊपर कहे त्रिसंयोगमें एकको आधार दोको उत्तर भावोंके भंगके दो प्रकार आधेय बनाकर कथन १०४८ औदायिक स्थानों के भंग ११७० बन्ध आधार उदय सत्त्व आधेय १०४८ भावोंमें गुण्य गुणाकार क्षेपका कथन ११७५ उदय आधार बन्ध सत्व आधेय पदभंगोंका कथन ११९० सत्त्व स्थान आधार बन्ध उदय आधेय १०९४ जातिपदकी अपेक्षा गुणस्थानोंमें भंगोंके बन्ध उदय आधार सत्त्व आधेय समुदायका कथन ११९२ बन्ध सत्त्व आधार उदय आधेय १११३ गुण्य आदि की संख्याका कथन ११९९ उदय सत्त्व आधार बन्ध आधेय १११५ पदोंका आश्रय लेकर भंगोंका कथन १२०२ भंगोंके मिलानेके लिए सूत्र १२०७ मिथ्यादृष्टिके सब पदभंगोंका प्रमाण १२१२ ६. आत्रवाधिकार ११२२-११५६ अन्य गुणस्थानोंमें उक्त कथन १२:३ नमस्कार पूर्वक प्रतिज्ञा ११२२ अन्य मतोंके भेदोंका कथन १२३८ आस्रवके मूल कारण ११२२ क्रियावादियोंके मूल भंग १२३८ मूल कारणोंका गुणस्थानोंमें कथन ११२३ कालवाद, ईश्वरवाद, आत्मवाद, उत्तर कारणोंका गुणस्थानोंमें कथन ११२५ नियतिवादका अर्थ १२४० गुणस्थानों में प्रत्ययोंकी व्युच्छित्ति और अक्रियावादके मूल भंग १२४१ अनुदयका कथन अज्ञानवादके भेद १२४२ प्रत्ययों के पाँच प्रकार ११२८ वैनयिकवादके मूल भंग १२४४ स्थानोंका गुणस्थानोंमें कथन ११२८ अन्य कानवाट १२४४ स्थानोंके प्रकार ११२९ कूटोंके प्रकार ११३० ८. त्रिकरणचूलिकाधिकार १२४९-१३८५ कूटोंके यन्त्र ११३२ कटोच्चारणके प्रकार ११३९ नमस्काररूप मंगल १२४९ भंगानयन प्रकार अधःप्रवृत्तकरण कौन करता है १२४९ भंगोंका कथन ११४७ अधःप्रवृत्तकरणका लक्षण १२४२ द्विसंयोगो आदि भंगोंको लानेका उपाय ११४८ अधःप्रवृत्तकरणका अंकसंदृष्टि द्वारा कयन १२५० ज्ञानावरण आदिके बन्धके कारण अधःकरणके चयवन आदिका कथन १२५१ चयवन लानेका विधान १२५४ १२५५ ७. भावचूलिकाधिकार अनुकृष्टिके प्रथम खण्डका प्रमाण १९५७-१२४८ अर्थ संदष्टि द्वारा कथन १२५७ नमस्कारपूर्वक प्रतिज्ञा १९५७ पट्स्थान वृद्धिका कथन पांच भाव तथा उनके लक्षण ११५८ अपूर्वकरणका कयन १२६७ पांच भावोंके उत्तर भेद ११५९ अनिवृत्तिकरणका कथन १२७२ गुणस्थानों में मल भाव ११६१ कर्मस्थिति रचना १२७२ गुणस्थानोंमें उत्तर भाव ११६१ नमस्कार पूर्वक प्रतिज्ञा १२७४ एक जीवके एक कालमें सम्भव भाव आबाधाका कथन १२७४ तथा उनके संयोगी भंग ११६३ बावुको आबाधाका कथन १२७७ मूल भावोंकी तरह संयोगी भंगोंकी संख्या ११६५ उदीरणाको अपेक्षा आबाधाका कथन १२७७ १२६३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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