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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ७६५ उपशमश्रेणियोळु अपूर्वकरणाद्युपशांतकषायपय्यंतमाद नाल्कुं गुणस्थानंगळोळ प्रत्येकमष्ट चतुरेकविंशतिः अष्टाविंशति प्रकृतिसत्वस्थानमुं चतुविंशतिप्रकृतिसत्वस्थानमुमेकविंशतिप्रकृतिसत्वस्थानमुमप्पुवु । २८१२४।२१। एते दोडुपशमणियनंतानुबंधिचतुष्टयमुं विसंयोजिसवेयु विसंयोजिसियं दर्शनमोहनीयम क्षपियिसियुं मेणु क्षपियिसदेयुमारोहणमं माळपरप्पुरिद, क्षपकश्रेण्यां क्षपकणियोळु अपूर्वकरणनोळमष्टकषायानिवृत्तिकरणपथ्यंतं नियमदिवमेकविंशति ५ प्रकृतिसत्वस्थानमक्कु २१॥ ___ अनंतरं क्षपकाष्टकषायानिवृत्तिकरणभायदं मेले अनिवृत्तिकरणंगे सत्वस्थानंगळं पेळ्दपरु : तेरसबारेयारं तेरसबारं च तेरसं कमसो। पुरिसित्थिसढंवेदोदयेण गदपणगबंधम्मि ॥५१२॥ त्रयोदश द्वादशैकादशत्रयोदश द्वादश च त्रयोदश क्रमशः। पुरुषस्त्रीषंडवेदोदयेन गतपंचकबंधे॥ . अष्टकषायक्षपणानंतरं पुवेदोददिदं क्षपकण्यारोहणं गेद पंचप्रकृतिबंधकानिवृत्तिकरणंगे त्रयोदश द्वादशैकादश प्रकृतिसत्वस्थानंगळप्पुवु । १३ । १२ । ११ । स्त्रीवेदोददिदं क्षपकण्यारोहणं गेय्द पंचबंधकानिवृत्तिकरणनोळ त्रयोदश द्वादशत्रयोदशप्रकृतिसत्वस्थानमुं द्वादशप्रकृति- १५ सत्वस्थानमक्कु १३ । १२ । नपुंसकवेदोददि क्षपकण्यारोहणं गेम्द पंचबंधकानिवृत्तिकरणनोळ त्रयोदश त्रयोदश प्रकृतिसत्वस्थानमक्कु । १३ । मदते दोडे पुवेदिपंचबंधकानिवृत्तिकरणनोळष्ट. कषायंगळु क्षपियिसल्पडुत्तिरलु पदिमूरु षंडवेदं क्षपियिसल्पडुत्तिरलु पन्नेरडं स्त्रीवेदं क्षपियिसल्प उपशमश्रेण्यां चतुर्गुणस्थानेषु प्रत्येकमष्टाविंशतिकचतुर्विशतिककविंशतिकानि त्रीणि विसंयोजितानंतानुबंधिनः क्षपितदर्शनमोहसप्तकस्य तत्सत्त्वस्य तत्रारोहणात । क्षपकश्रेण्यामपूर्वकरणे अष्टकषायानिवृत्तिकरणे २० चैकविंशतिकमेव ॥५११॥ तत उपरि पुंवेदोदयारूढस्य पंचबंधकानिवृत्तिकरणे त्रयोदशकद्वादशक कादशकानि । अष्टकषायक्षपणा उपशम श्रेणिके अपूर्वकरण आदि चार गुणस्थानों में से प्रत्येकमें अठाईस, चौबीस और इक्कीस प्रकृतिक तीन सत्त्वस्थान होते हैं, क्योंकि अनन्तानुबन्धीकी विसंयोजना करनेवाले और अनन्तानुबन्धी तथा तीन दर्शनमोहका झपण करनेवालेके चौबीस और इक्कीस २५ प्रकृतिक सत्त्व होता है और ऐसे जीव उपशम श्रेणिपर आरोहण करते हैं। क्षपकश्रेणिमें अपूर्वकरणमें और अनिवृत्तिकरणमें आठ कषायोंका क्षय करनेसे पूर्व इक्कीस प्रकृतिक ही सत्त्वस्थान होता है ॥५११॥ __उससे ऊपर जो पुरुषवेदके उदयसे श्रेणि चढ़ता है उसके जहाँ अनिवृत्तिकरणमें पुरुषवेद और संज्वलन, क्रोध, मान, माया, लोभका बन्ध होता है उस भागमें तेरह, बारह और ३० ग्यारह प्रकृतिरूप तीन सत्त्वस्थान हैं। क्योंकि आठ कषायोंके क्षयके अनन्तर स्त्रीवेद और नपुंसकवेदका क्रमसे क्षय होता है। जो स्त्रीवेदके उदयके साथ श्रेणि चढ़ता है उसके wwwwwwww Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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