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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका ७६३ मक्कुमवरोळ संज्वलनक्रोधर्म क्षपियिसिदोडे त्रिप्रकृतिसत्वस्थानमक्कुमवरोळ संज्वलनमानमं क्षपियिसिदोर्ड द्विप्रकृतिसत्वस्थानमक्कुमवरोळु संज्वलनमार्ययं क्षपियिसिदोडकादशप्रकृतिसत्वस्थानमक्कु । मा बादरलोभमं क्षपियिसिदोडेकसूक्ष्मलोभप्रकृतिसत्वस्थानमक्कुमल्लि लोभसामान्यदिदमों दे प्रकृतिसत्वस्थानं पेळल्पद्रुदु। इंतु मोहनीयसत्वस्थानंगळु पदिनैय्वप्पुर्वेदु निर्देशि. सल्पटुवु । १५॥ अनंतरमी पदिनय्य, मोहनीयसत्वस्थानंगळं मिथ्यादृष्टयाद्युपशांतकषायगुणस्थानपर्यंतमावगुणस्थानंगळोळु संभविसुव सत्वस्थानंगळं संख्येयं मुंदणगाथासूत्रदिं पेन्दपरु : तिण्णेगे एगेगं दो मिस्से चदुसु पणणियट्ठीए । तिणि य थूलेक्कारं सुहुमे चत्तारि तिण्णि उवसंते ॥५०९॥ श्रोग्येकस्मिन् एकस्मिन्नेकं द्वे मिश्रे चतुर्दू पंचनिवृत्तौ। त्रीणि च स्थूले एकादश सूक्ष्मे १० चत्वारि त्रीण्युपशांते ॥ त्रीण्येकस्मिन् मूरु सत्वस्थानंगळो, मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळप्पुवु ३॥ एकस्मिन्नेक सासावनगुणस्थानमो दरोळोदे सत्वस्थानमक्कु १॥ द्वे मिश्रे मिश्रगुणस्थानदोळ रडु सत्वस्थान गळप्पुवु २। चतुर्यु पंच असंयतादि नाल्कुगुणस्थानंगळोळ प्रत्येक पंच अय्दप्दु सत्वस्थानंगळप्पुव ५॥ निवृत्तौ अपूर्वकरणनोळ त्रीणि च मूरु सत्वस्थानंगळप्पुवु । ३॥ स्थूले अनिवृत्तिकरणनोळु १५ एकादश पन्नोंदु सत्वस्थानंगळप्पुवु ११ ॥ सूक्ष्मे सूक्ष्मसांपरायनोळु चत्वारि नाल्कु सत्व स्थानंगळप्पुवु ४ ॥ उपशांते उपशांतकषायनोळु त्रीणि मूरु सत्वस्थानंगळप्पुवु ३॥ अनंतरमीस्थानंगळवाउवे बडे पेळ्दपरु : पुनः षण्णोकषाये क्षपिते पंचकं । पुनः वेदे क्षपिते चतुष्कं । पुनः संज्वलनक्रोधे क्षपिते त्रिकं । पुनः संज्वलनमाने क्षपिते द्विकं । पुनः संज्वलनमायायां क्षपितायामेककं । पुनः बादरलोभे क्षपिते सूक्ष्मलोभरूपमेककं । २० उभयत्र लोभसामान्येनैक्यं ॥ ५०८ अमीषां पंचदशानां गुणस्थानसंभवमाह मिथ्यादृष्टी त्रीणि सासादने एक मिश्रे द्वे असंयतादिचतुर्ष पंच पंच अपूर्वकरणे त्रीणि अनिवृत्तिकरणे एकादश सूक्ष्मसांपराये चत्वारि उपशांतकषाये त्रीणि ॥५०९॥ तानि कानीति चेदाहतथा उनमें-से शेष दूसरेका क्षय होनेपर ग्यारह प्रकृतिरूप सत्त्व होता है। छह हास्यादि नोकषायोंका क्षय होनेपर पाँच प्रकृतिरूप सत्त्व होता है। पुरुषवेदका क्षय होनेपर चार २५ प्रकृतिरूप सत्त्व होता है। संज्वलन क्रोधका क्षय होनेपर तीन प्रकृतिरूप सत्त्व होता है। संज्वलन मानका क्षय होनेपर दो प्रकृतिरूप सत्त्व होता है। संज्वलन मायाका क्षय होनेपर एक बादर लोभरूप सत्त्व होता है। बादर लोभका क्षय होनेपर सूक्ष्म लोभरूप सत्त्व होता है। बादर और सूक्ष्म लोभ एक ही प्रकृति है। इससे दोनोंका एक ही स्थान कहा है। इस प्रकार पन्द्रह सत्व स्थान हैं ॥५०८॥ इन पन्द्रह स्थानोंका गुणस्थानोंमें सत्त्व बतलाते हैं - मिथ्यादृष्टि में तीन, सासादनमें एक, मिश्रमें दो, असंयत आदि चारमें पाँच-पाँच, अपूर्वकरणमें तीन, अनिवृत्तिकरणमें ग्यारह, सूक्ष्म साम्परायमें चार और उपशान्त कषायमें तीन सत्त्व स्थान होते हैं ॥५०९।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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