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________________ गो. कर्मकाण्ड ८०९ ८११ ८१२ ८२२ ८२८ سه .. س لام .. الله " ८४४ मिश्रयोगवाले और केवलपर्याप्त योगवाले नाम कमके बन्ध स्थानोंका मार्गणाओंमें गुणस्थान ७४० कथन जुदे रखे योगोंका कथन ७४३ तिथंच गतिमें छह ही बन्ध स्थान ८०६ घटाये गये वेदोंका कथन ७४४ इन्द्रियादि मार्गणाओंमें कथन ८०७ योगके आश्रयसे मोहनीयकी सब उदय प्रमाण और नयका स्वरूप प्रकृतियोंकी संख्या ७५० नयाँ के भेद संयमकी अपेक्षा उक्त कथन ७५१ निश्चयनय गुणस्थानोंमें लेश्या ७५३ व्यवहारनय लेश्याके. आश्रयसे मोहके स्थानों और नंगम आदि नयोंका स्वरूप ८१५ प्रकृतियोंकी संख्या योगोंमें नामकर्मके बन्ध स्थान ८२१ सम्यक्त्वके आश्रयसे मोहके उदयस्थानों और वेदों और कषायों में बन्ध स्थान प्रकृतियोंकी संख्या ७५८ कषायोंके भावोंका सूचक यन्त्र मोहनीयके सत्त्वस्थानोंका कथन ७६२ ज्ञान मार्गणामें बन्ध स्थान गुणस्थानोंमें सत्त्वस्थान ९६४ संयम मार्गणामें बन्ध स्थान क्षपक श्रेणिपर आरोहण करनेवालोंके वेदके सामायिक संयमका स्वरूप उदय भेदसे भेद छेदोपस्थापना आदिका स्वरूप यन्त्र द्वारा स्पष्टीकरण देवगतिमें कौन कहाँ तक उत्पन्न होता है ८४१ मोहनीयके बन्धस्थानोंमें सस्वस्थाम देवोंमें मिथ्यादृष्टियोंमें बन्ध स्थान नामकर्म के स्थानोंके आधारभूत इकतालीस पद ७७५ तियंचोंमें सम्यक्त्वकी प्राप्ति कैसे? नामकर्मके बन्धस्थान ७७८ दर्शन मार्गणामें नाम कर्मके बन्ध स्थान वे किन प्रकृतियोंके साथ बंधते है ७७९ लेण्या मार्गणामें नाम कर्मके बन्ध स्थान ८५० नरकोंमें उत्पन्न होने योग्य जीव ८५२ आतप और उद्योत प्रशस्त प्रकृति किस पदके लेण्याओंमें संक्रमणका कथन ८६२ साथ बँधती है लेण्यासहित तियंचोंमें नामकर्मके बन्ध स्थान ८६४ तेईस आदि स्थानोंको प्रकृतियोंको जाननेके लक्ष्यासहित मनुष्योंमें नामकर्मके बन्ध स्थान ८६७ लिए उन प्रकृतियोंका पाठक्रम लेश्या सहित देवोंमें नाम कर्मके बन्ध स्थान ८६८ नामकर्मके एक जीवके एक समयमें बन्ध योग्य देवों में तथा देवोंकी उत्पत्तिका कथन ८७३ बन्धस्थान भव्य मार्गणा बन्ध स्थान अठाईस प्रकृतिरूप बन्धस्थान सम्यक्त्व मार्गणामें बन्ध स्थान ८७७ उनतीस प्रकृतिरूप छह स्थान प्रसंगवश सम्यक्त्वकी उत्पत्ति आदिका कथन ८७७ तीस प्रकृतिरूप छह स्थान वेदक सम्यग्दृष्टिके क्षायिक सम्यग्दर्शन होनेका नामकर्मके बन्ध स्थानोंका यन्त्र ७९० विधान ८८५ नामकर्मके बन्ध स्थानोंके भंग ७९१ एक गुणस्थानसे दूसरेमें जानेके नियम ८९४ मिथ्यादृष्टि गुणस्थानमें भंग ७९४ संशी और थाहार मार्गणामें नाम कर्मके सासादन गुणस्थानमें भंग बन्ध स्थान ८९८ मित्र गुणस्थान आदिमें भंग अपुनरुक्त भंगोंका कथन एक भवको छोड़कर दूसरे भव में उत्पन्न पूर्वोक्त भंगके भुजकार आदि प्रकार तथा होनेका नियम सम्बद्ध स्वस्थान आदिका लक्षण ८४८ ७८० ७८२ ८९९ ९०३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001326
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 2
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year2000
Total Pages828
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, & Karma
File Size18 MB
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