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गो० कर्मकाण्डे
सतीर्थ ॥० | बंध ॥
सतीत्थं ॥
| अबंध।
१४०
अतीत्थं ॥० | बंध।
अतीत्थं ॥० | अबंध ॥
सतीत्थं ॥ ० बच॥ र
सतीत्थं ॥० बंध ॥
| सतीत्यं ॥ ० अबंध ॥ १३
सतीत्यं ॥ ० | अबंध।
अतीत्यं ॥
| बंध॥
| अतीर्थ ॥ ० अबंध ॥ १४० १३६ १३५ । १३४ १२२
अतीर्थ ॥० अबंध॥
बद्धायुस्थान २०, भंग ६०
अबद्धायुस्थान २०, भंग ६०
१४५ १४१ १४० १३९ ।१३८ ती. आ. सहित १४६ १४२ ।१४१ ।१४० १३९
" | २ | २ | २ २ । २ ३ ३ १ ३ | ३
|१४५ १४१ १४० १३९ |१३८ । १४४ १४० १३९ ।१३८ १३७ तीर्थ.
ताथा राहत ५ ।५ । ३ ३ ४ आहारक रहित
१४२ ११३८ १३७ |१३६ /१३५ १४१ /१३७ ११३६ ।१३५ १३४ | २ ।२ ।२ । २
। ३ । १ । ३ । ३
१४० १३६ /१३५ १३४ १३३ ती. आ. रहित १४१ १३७ /१३६ /१३५ १३४
राहत | ५ ।५ । ३ । ३ ।४ । ४ । ४ । १ । ४ । ४ आगे दो, छह आदि घटायी प्रकृतियोंको कहते हैं
तियंचायु और कोई एक अन्य आयु ये दो प्रकृति जानना । दो ये और अनन्तानुबन्धी चतुष्क ये छह जानना। इनमें मिथ्यात्व मोहनीय मिलानेसे सात जानना। मिश्र
मोहनीय मिलानेसे आठ जानना। सम्यक्त्व मोहनीय मिलानेसे नौ जानता। ये घटाई ५ गयी प्रकृतियाँ हैं। अर्थात् बद्धायुकी प्रथम पंक्तिका प्रथम स्थान दो आय बिना एक सौ
छियालीस प्रकृतिरूप है। दूसरी पंक्तिका प्रथम स्थान तीर्थंकर बिना एक सौ पैतालीस प्रक्रतिरूप है। तीसरी पंक्तिका प्रथम स्थान आहारक चतुष्क बिना एक सौ बयालीस प्रकृतिरूप है। चौथी पंक्तिका प्रथम स्थान आहारक चतुष्क और तीर्थकर बिना एक सौ इकतालीस प्रकृतिरूप है। इनमें बध्यमान आयुरूप एक प्रकृति और घटानेपर अबद्धायुके चार स्थान होते हैं । इस प्रकार आठ स्थान हुए। इन सबमें अनन्तानुबन्धी चतुष्करूप चार प्रकृतियोंके घटानेपर दूसरे आठ स्थान होते हैं। उनमें से भी मिथ्यात्व घटानेपर तीसरे आठ स्थान
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