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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका गतिनामकर्म चतुविधमक्कं । नारकतिर्यग्गतिनामकर्ममें दुं मनुष्यदेवगतिनामकर्ममेदितं । जातिनामकर्म पंचविधमक्कुमेकेंद्रिय द्वींद्रिय त्रोंद्रिय चतुरिद्रियजातिनामकर्ममें दुं पंचेंद्रियजातिनामकर्ममें दिन्तु । शरीरनामकर्म पंचविधमक्कं । औदारिक वैक्रियिक आहार तैजस कार्मण शरीरनाम कर्ममेंदिन्तु। औदारिकादिपंचशरीरंगळिवक्के द्विसंयोगदिभंगंगळ्पदिनय्दप्पुर्वे बुदं पेळ्दपरु : तेजाकम्मेहि तिए तेजा कम्मेण कम्मणा कम्मं । कयसंजोगे चदु चदु चदु दुग एक्कं च पयडीओ ॥२७॥ तैजसकार्मणाभ्यां त्रये तैजसं कार्मणेन कार्मणेन कार्मणं । कृतसंयोगे चतुः चतुश्चतुदुर्चेका वा प्रकृतयः॥ तैजसकामणंगळेरडरोडने। त्रये औदारिक वैक्रियिक आहारकमेब त्रयदोळ् । कृतसंयोगे संयोगं माडल्पडुत्तिरलु । चतुश्चतुश्चतुः प्रकृतयो भवंति नाल्कं नाल्कं नाल्कु प्रकृतिगळप्पुवु। तैजसं कार्मणदोडने संयोग माडल्पडुत्तिरलु द्विप्रकृतिगळप्पुवु । कार्मणदोडने कार्मणं संयोगं माडल्पडुत्तिरलेकप्रकृतियक्कुमित पंचदशप्रकृतिगळगे संदृष्टि रचने यिदु: तत्र गतिनाम चतुर्विधं-नारकतिर्यग्गतिनाम मनुष्यदेवगतिनाम चेति । जातिनाम पञ्चविधं-एकेन्द्रिय- १५ द्वींद्रियत्रींद्रियचतुरिद्रियजातिनाम पञ्चेंद्रियजातिनाम चेति । शरीरनाम पञ्चविधं-औदारिकवैक्रियिकाहारकतैजसकार्मणशरीरनामेति ।।२६॥ एषां पञ्चशरीराणां भङ्गानाह औदारिकर्व क्रियिकाहारकत्रये तैजसकार्मणाभ्यां संयोगे कृते चतरश्वतस्रः प्रकृतयः । तद्यथाऔदारिकौदारिक-औदारिकतैजस-औदारिककार्मण-औदारिकतैजसकार्मणाः । एवं वैक्रियिके आहारकेऽपि ज्ञातव्याः । पुनः तैजसकार्मणेन संयोगे कृते तदा तेजसतैजसतैजसकार्मणेति द्वे प्रकृती। पुनः कार्मणं कार्मणेन २० तदा कार्मणकार्मणेत्येका । एवं पञ्चदश भवन्ति । नाम । गतिनामके चार भेद हैं-नारकगतिनाम, तियंचगतिनाम, मनुष्यगतिनाम, देवगतिनाम । जातिनामके पाँच भेद हैं-एकेन्द्रिय जातिनाम, द्वीन्द्रिय जातिनाम, त्रीन्द्रिय जातिनाम, चतुरिन्द्रिय जातिनाम और पंचेन्द्रिय जाति नाम । शरीरनामके पाँच भेद हैं औदारिक शरीरनाम, वैक्रियिक शरीरनाम, आहारक शरीरनाम, तैजस शरीरनाम और २५ कार्मण शरीरनाम ।।२६।। इन पाँच शरीरोंके भंग कहते हैं औदारिक, वैक्रियिक, आहारक इन तीनोंमें तैजस और कार्मणका संयोग करनेपर चार, चार, चार प्रकृतियाँ होती हैं, जो इस प्रकार हैं-औदारिकऔदारिक, औदारिकतैजस, औदारिककामण, औदारिकतैजसकामेण । इसी प्रकार वैक्रियिक और आहारकमें भी इ. जानना चाहिए। पुनः तैजसका कार्मणसे संयोग करनेपर तैजसतैजस, तैजसकार्मण दो प्रकृति होती हैं। पुनः कार्मणका कार्मणसे संयोग होनेपर एक प्रकृति होती है। इस प्रकार क-३ - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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