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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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आ सासादन द्वितीयबद्धायुष्य सत्वस्थानदोळ तीर्थमुमन्यतरायुद्वितयमुमंतु त्रिप्रकृतिगळ सत्वरहितमागि नूरनावत्तदु प्रकृतिसत्वस्थानमक्कुमेदिताहारकचतुष्टयसत्यमुळ्ळ सासादननुमोळने बाचार्यर पक्षदोल भंगनों देयक्कुम दे 'तें दोडे बद्धदेवायुष्यनुपशमसम्यग्दृष्टि आहारकचतुष्टय मनप्रमत्तगुणस्थानदोळ पाजिसि बळिक्कं सम्यक्त्वविराधकनादोडल्लियों दें भंगमक्कुमा अबद्धायुष्यनोल भुज्यमानमनुष्यायुष्यनुपशमसम्यग्दृष्टि आहारकचतुष्टयमनुपाजिसि अनंतानुबंधकषायोदयदिदं सासादननाडोळियों दु भंगमक्कुं मुन्नं बद्धदेवायुष्यंर्ग मरणमादोडे भुज्यमानदेवायुष्यनोको संगमकुं | अंतु अबद्धायुष्यनोळे रडु भंगमध्वु । संदृष्टि :
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बद्ध
अबद्ध
मनो प्रथम बद्धायुः सत्वस्थानदोळु विवक्षितभुज्यमान बद्धयमानायुर्द्वयमल्लवितरायुद्वितयमुं तीर्थमुमंतु प्रकृतिसत्वर हितमागि नूरनात्वत्तय्वु प्रकृतिसत्वस्थानं मुं पेव्व द्वादशभंगंगळोळु पुनरुक्तसमभंगंगळं कळेदु शेषमपुनरुक्तभंगंगळय्दप्पुववल्लि अबद्धायुः सत्वस्थानदो लु १०
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भंगाः । अबद्धायुष्कस्य चत्वारिंशच्छतप्रकृति के चतुर्गतिभुज्यमानायुर्भेदाच्चत्वारो भंगाः ।
द्वितीये बद्धायुःस्थाने पंचचत्वारिंशच्छतप्रकृति के बद्धाहारचतुष्कस्य कस्यचित्सासादनत्वप्राप्तिरित्युपदेश । श्रयणादेको भंगः । तदबद्धायुष्के भुज्यमानमनुष्यायुष्कस्योपशमसम्यग्दृष्टे रजिताहारकचतुष्कस्थानंतानुबंध्युदयाज्जातसासादनस्यैको भंगः । प्रावद्धदेवायुष्कस्य मृत्वा जातभुज्यमानदेवायुष्कस्यैको भंगः, एवं द्वौ ।
संदृष्टि
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मित्रे प्रथमे बद्धायुः स्थाने पंचचत्वारिंशच्छतप्रकृति के प्राग्वद्द्वादशभंगे सप्तपुनरुक्तान्विना पंच भंगाः । अपेक्षा बारह भंगोंमें से सात पुनरुक्त भंग के बिना पाँच भंग होते हैं। अबद्धायुष्कके एक सौ चालीस प्रकृतिरूप स्थान में चारों गति सम्बन्धी भुज्यमान आयुके भेदसे चार भंग होते हैं । दूसरे बद्धायुस्थान में जो एक सौ पैंतालीस प्रकृतिरूप है, जिसने आहारक चतुष्कका बन्ध किया है ऐसे किसी जीवको सासादन गुणस्थानकी प्राप्ति होती है इस उपदेशका आश्रय २० लेकर एक भंग कहा है । उसके अबद्धायु स्थान में दो भंग इस प्रकार हैं-- भुज्यमान मनुष्यायुवाला उपशम सम्यग्दृष्टि आहारक चतुष्कका बन्ध करके मरकर सासादन हुआ सो एक भंग तो यह हुआ । पूर्वमें जिसके देवायुका बन्ध हुआ था ऐसा उपशम सम्यग्दृष्टी आहारक चतुष्कका बन्ध करके मरकर देव हो सासादन हुआ । वहाँ भुज्यमान देवायुका सत्त्व होने से दूसरा भंग हुआ ।
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मिश्र गुणस्थान में बद्धायके चारों स्थानों में पूर्वोक्त प्रकारसे बारह भंगों में से पाँच-पाँच
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