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________________ कर्णावृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १५ पर्यंतं प्रतिसमयनुं गुणसंक्रमभागहा दिवम पर्कार्षसिकोंडु असंख्यातगुणहोनक्रर्मादिदं मिथ्यात्व सम्यग्मिथ्यात्व सम्यक्त्वप्रकृतिरूपमागि मूरु पुंजंगळं माळकुमंतु माडुत्तिरलुमा प्रथमोपशमसम्यक्त्वकालचरमसमयदोळु मिथ्यात्वद्रव्यम् मिश्रप्रकृतिद्रव्यमुं सम्यक्त्वप्रकृतिद्रव्य मुमितिष्ंवु : ^मि ^सं ० स ० १२- गु O ० ७१७ २१ ^ मि ३ शक्ति । र्ध्य ना Jain Education International ० ० o ० ० २१ ० मिथ्यात्वमे तु मिथ्यात् मागि माडल्पटुवे दोडे - अतिच्छापनावलिमात्रस्थिति हासमागि माडल्पटट्टुवें बबत्थं । ई विधानमं मनदोळि रिसियसंख्यातगुणहीनद्रव्यक्रर्मादिदं मिथ्यात्वद्रव्यं त्रिप्रकारमक्कुम बाचाय्र्यनिव पेळल्पट्टुवु । चारित्रमोहनीयं द्विविधमक्कुं । कषायवेदनीयं नोकषायवेदप्रथमसमयात्प्रभृति चरमसमयपर्यंतं प्रतिसमयं गुणसंक्रमभागहारेण अपकृष्यापकृष्य असंख्यातगुणहीनक्रमेण मिथ्यात्वसम्यग्मिथ्यात्वसम्यक्त्व प्रकृतिरूपेण त्रिपुंजीकरोति तथा सति तच्चरसमयेऽप्येवं तिष्ठति— मि A १.० १२- गु ३ व ९ ना शक्ति १ ७ ख १७० गु १ स १२-० ७ । ख १७ । गु ३ ९ ना S ख शक्ति मि A १२ ० ख १७ गु ३ व ९ ना ख १ स १२-१ ७ । ख १७ । गु ३ S ९ ना ख ख स १२ । १ १ ७ ख १७ गु व ९ ना ख ख शक्ति सं A मिथ्यात्वस्य मिध्यात्वकरणं तु अतिस्थापनाबलिमात्रं पूर्वस्थितावूनितमित्यर्थः । एतद्विधानं मनसि कृत्वा असंख्यातगुणहीनद्रव्यक्रमेण मिथ्यात्वद्रव्यं त्रिधा स्यात् इति आचार्येणोक्तम् । For Private & Personal Use Only ५ प्रथम से लेकर अन्तिम समय पर्यन्त प्रतिसमय गुणसंक्रम भागहार के द्वारा उस मिध्यात्व के द्रव्यको अपकर्षण कर-करके मिथ्यात्व, सम्यक मिथ्यात्व और सम्यक्त्वप्रकृतिरूपसे तीन पुंज करता है । उसमें मिथ्यात्वका जितना द्रव्य होता है उससे असंख्यातगुणा हीन सम्यकूमिथ्यात्वका और उससे भी असंख्यातगुणा हीन सम्यक्त्व प्रकृतिका द्रव्य होता है। ऐसा होनेपर अन्तिम समय में भी ऐसा ही रहते हैं । यहाँ प्रश्न हो सकता है कि जो द्रव्य- १५ मिथ्यात्वरूप ही था उसका मिथ्यात्व करना कैसा ? इसका समाधान यह है कि मिथ्यात्व की १० www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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