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गो० कर्मकाण्डे
३ यितिप्पत्तारं प्रकृतिगळं २६ दृष्टिय नूर पदिने प्रकृतिगोल कळवु शेष तो भत्तों दु प्रकृतिगळ, दययोग्यंगळवु ९१ । गुणस्थानंगळ मिथ्यादृष्टिसासादन गुणस्थानंगळे रडेयपुवल्लि मिथ्यादृष्टियो मिथ्यात्व प्रकृतियं १ आतपनाम १ सूक्ष्मत्रयम् ३ मितदुं प्रकृतिग ५ स्त्यानयानगृद्धित्रयमुं ३ परधातोद्योतोच्छ्त्त्रयमुं ३ दुःस्वरसु १ मप्रशस्त विहायोगतियु १ मितेंदु ५ प्रकृतिग सासादननोलुदयमिल्लेक दोडा सासादनन भवप्रथमदोळु का जघन्यदिद मेकसमयमुत्कृष्टदिदमारावळिकालमप्युर्दारमा प्रकृत्यष्टकं तंतम्म पर्थ्यातिर्थिदं मेलल्ल दुदयि सदप्पुदरिनातनोळा प्रकृतिळगुदय मिल्लप्पुर्दारदं मिथ्यादृष्टियोदयव्युच्छित्तिगळेप्पुवंतागुत्तं विरला मिथ्यादृष्टियोदयव्युच्छित्तिगळ पदिमूरु १३ ॥ सासादननोळ, तन्न गुणस्थानदों भत्तु प्रकृतिगळगुदपव्युच्छित्तिय कु- ९ मंतागुत्तं विरला मिथ्यादृष्टिगुणस्थानदोळनुदयं शून्यमुदयंगळ १० तो भत्तों ९१ । सासादनगुणस्थानदोळ, पदिमूरुं प्रकृतिगानुदयमक्कुं १३ । उदयप्रकृतिगळपत्तं ७८ ॥ संदृष्टिः
संज्ञियो० ९१ ।
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गतिः सुभगत्रयं नरकमनुष्यदेवायूंषि च मिथ्यादृष्टिः सप्तदशोत्तरशते नेत्ये कनवतिरुदययोग्याः ९९ । गुणस्थानद्वयं । तत्र मिथ्यादृष्टौ स्वस्य पंच पुनः स्त्यानगृद्धित्रयपरघातोद्योतोच्छ्वासदुःस्वराप्रशस्त विहायोगतीनां पर्याप्तेरुपर्युदयनियमात्, सासादने स्तोककालत्वात्तदघटनात् ता अष्टौ च व्युच्छित्तिः । १३ । सासादने स्वस्य १५ नव ९ । तथा सति मिथ्यादृष्टावनुदयः शून्यं । उदय एकनवतिः ९१ । सासादने त्रयोदश संयोज्यानुदयः
त्रयोदश १३ । उदयोऽष्टसप्ततिः ७८ ।
प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुवर, आदेय, नरकायु, मनुष्यायु, देवायु ये छब्बीस प्रकृतियाँ मिथ्यादृष्टि के उदय योग्य एक सौ सतरह में से नहीं होतीं । अतः उदय योग्य इक्यानवें ९१ हैं । गुणस्थान दो हैं । उनमें से मिथ्यादृष्टि में अपनी पाँच और स्त्यानगृद्धि आदि तीन, २० परघात, उद्योत, उच्छ्वास, दुःखर, अप्रशस्त विहायोगति ये प्रकृतियाँ पर्याप्ति पूर्ण होनेके
बाद उदयमें आती हैं और सासादनका काल थोड़ा होनेसे वहाँ इनका उदय सम्भव नहीं है अतः इन आठकी व्युच्छित्ति मिलकर तेरहकी होती है। सासादन में अपनी नौ । ऐसा होने पर मिध्यादृष्टि में अनुदय शून्य । उदय इक्यानवें ९१ । सासादन में तेरह मिलाकर अनुदय तेरह | उदय अठहत्तर ७८ ।
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