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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका कपोत यो० ११९ ।
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भवनत्रयदेव कंळ निबर्गमपर्याप्तकालवोळ, अशुभलेश्यात्रयमे शरीरपर्याप्तियिदं मेले तेजोलेश्याजघन्य शिमेयपुर्दारवमशुभलेश्य त्रयासंयतसम्यग्दृष्टिभवनत्रयदोळ, पुट्टप्पुदरिदं देवद्विकमुं १ देवायुष्यमुं १ सांसादनसम्यग्वृष्टियोळुदयव्युच्छित्तियादुवे के दोडे अशुभलेश्यात्रय सासावनना भवनत्रयदोळ, पुटुवनप्पुर्वारवमंते पेळपट्टुवु ॥
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साणे सुरासुरग दिदेव तिरिक्खाणु वोच्छिदी एवं । काओदे अयदगुणे णिरयतिरिक्खाणुवोच्छेदो ॥ ३२६ ॥
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सासवने सुरायुः सुरगति देवगति तिर्य्यगानुपूर्व्यव्युच्छित्तिरेवं । कापोते असंयतगुणं नरकतियंगानुपूळयंव्युच्छेवः ॥
अबु कारणमागि कृष्णनीललेश्याद्वय सासादननोळ, सुरायुष्यमुं सुरगतियुं देवानुपूर्व्यभुं तिर्य्यगानुपूर्व्यमुं मंतु नाल्कुं प्रकृतिगळगुदयव्युच्छित्तियक्कुमंतागुत्तं विरला सासादननोळ १० पविमूरुं प्रकृतिगगुदयव्युच्छित्तियक्कुं १३ ॥ एवं काओदे कपोतलेश्ययोळमित नूर हत्तो भत्तं प्रकृतिगळवययोग्यंगळप्पु ११९ । कपोलेश्याऽसंयत गुणस्थानदोळु नरकानुपूर्यमुं
भवनत्रयदेवानामपर्याप्तकाले अशुभलेश्यात्रयं । पर्याप्तेरुपरि तेजोलेश्याजघन्यांशः । अशुभलेश्यात्रयासंयतानां भवनत्रयाऽनुत्पत्तेर्देवद्विकं देवायुः सासादने व्युच्छित्तिः तादृक् सासादनानां तत्रोत्पत्तेः ॥ ३२५॥ तथैवाह
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ततः कारणात्कृष्णनीलयोः सासादने सुरगत्यायुर । नुपूव्यंतिर्यगानुपूर्व्याणि व्युच्छित्तिरेवं सति त्रयोदश
४. असंयत में अनुदय एक मिलाकर तथा सम्यक्त्व और तीन आनुपूर्वीका उदय होनेसे अठारह १८ | उदय एक सौ एक १०१ ।
भवनवासी व्यन्तर और ज्योतिषी देवोंके अपर्याप्त अवस्था में तीन अशुभ लेश्या होती हैं । और पर्याप्त होनेपर तेजोलेश्याका जघन्य अंश होता है। तीन अशुभलेश्यावाले असंयत २० सम्यग्दृष्टी मरकर भवनत्रिक में उत्पन्न नहीं होते। इसलिए देवगति, देवानुपूर्वी और देवायुकी व्युच्छित्ति सासादनमें कही है; क्योंकि अशुभलेश्यावाले सासादन सम्यग्दृष्टि भवनत्रिक में उत्पन्न हो सकते हैं || ३२५||
वही कहते हैं
इसी कारण से कृष्ण और नीलमें सासादन गुणस्थान में देवगति, देवानुपूर्वी, देवायु, २५ और तिचानुपूर्वीकी व्युच्छित्ति होने से तेरहकी व्युच्छित्ति होती है ।
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