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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका एवं माणादितिये मदिसुद अण्णाणगे दु सगुणोघं । वेभंगेवि पताविगिविगलिंदी थावराणुचऊ ॥३२३।। एवं मानादित्रये मतिश्रताज्ञानके तु स्वगुणोघः। विभंगेपि नातापैकविकलेंद्रियस्थावरानुपूयं चत्वारि ॥ एवं मानादित्रये क्रोधचतुष्कदोळेतते मानचतुष्कदोळं मायाचतुष्कदोमितरकषाय- ५ द्वादशप्रकृतिगळु तोर्थमुमंतु पदिमूलं प्रकृतिगळं कळेदु नूरों भत्तु नूरो भत्तु गळप्पुवु। १०९ । १०९ । अदु कारणमागि क्रोधदोळे रचने पेळल्पटुद । लोभमककुमंते यितरकषायद्वावशप्रकृतिगळ तीर्थमुं कळेदु योग्यंगळु नरोभत प्रकृतिगळप्पुवु १०९ ॥ सूक्ष्मसांपरायगुणस्थानावसानमागि पत्तु गुणस्थानंगळप्पुवु। मतिश्रुताऽज्ञानयोस्तु मते कुमतिकुश्रुतज्ञानंगळोळु सामान्यदिदं पेळ्द नरिप्पत्तेरडरोळाहारकद्विक, २ तीर्थमुं १ मिश्रसम्यक्त्वप्रकृतिगळु २ मंतर, कळेदु शेष- १० प्रकृतिगळुदययोग्यंगळ नूर हविने ११७ मिथ्यादृष्टियोळु मिथ्यात्वप्रकृतियु १ आतपनाममुं १ सूक्ष्मत्रयमुं ३ नरकानुपूय॑मु १ मंतारं प्रकृतिगळगुदयव्युच्छित्तियक्कुं ६। सासादननोळ तन्न साधारणानि मिथ्यादृष्टयुदयपंचोत्तरशते नेत्येकनवतिरुदयप्रकृतयो भवंति ॥३२२॥ एवं क्रोषचतुष्कवन्मानचतुष्के मायाचतुष्के च द्वादश, इतरकषायतीर्थ नेति नवोत्तरशतं तेन तद्रचना क्रोधरचनैव ज्ञातव्या । लोभेऽपि तथैव तत्त्रयोदशप्रकृत्यभावात् उदययोग्यं नवोत्तरशतं । सूक्ष्मसांपरायांतानि १५ गुणस्थानानि । १०९ । कुमतिकुश्रुतज्ञानयोः पुनः द्वाविंशत्युत्तरशते आहारकद्वयतीर्थमिश्रसम्यक्त्वप्रकृतयो नेति उसके कुछ काल तक अनन्तानुबन्धीका उदय नहीं होता। उसके उस कालमें इक्यानवे प्रकृतियोंका उदय होता है ॥३२२।। क्रोधकषाय रचना १०९ | मि. सा. | मि. | अ. | दे. प्र. अ. अ. | अ. | |४|१०| १८ | १४ | २८/३१ ३६ ४० | ४६ । क्रोधचतुष्ककी तरह मानचतुष्क और माया चतुष्कमें भी अन्य बारह कषाय और तीर्थकरके न होनेसे उदययोग्य एक सौ नौ हैं । अतः उनकी रचना क्रोध कषायकी रचनाकी २० तरह ही जानना । लोभमें भी तेरह प्रकृतियोंका उदय न होनेसे उदययोग्य एक सौ नौ हैं। किन्तु गुणस्थान सूक्ष्म साम्पराय पर्यन्त होते हैं। कुमति और कुश्रुतज्ञानमें एक सौ बाईसमें-से आहारकद्विक, तीर्थंकर, मिश्र और १. | मि क-६५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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