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________________ कर्णाटवृत्ति जोवतत्त्व प्रदीपिका अनुदिशानुत्तर चतुर्द्दश विमानंगळोळु पेदपरु : अविरदठाणं एक्कं अणुद्दिसादिसु सुरोघमेक हवे | भवणतिकपित्थीणं असंजदे णत्थि देवाणू || ३०५ ॥ अविरतस्थानमेकमनुदिशादिषु सुरौध एव भवेत् । भवनत्रयकल्पस्त्रीणामसंयते नास्ति देवानुपूव्यं ॥ अनुदिशानुत्तर विमानं गळोळ, असंयत गुणस्थानमा देयक्कुम पुर्दा रिदमुदययोग्यप्रकृतिगळेप्पतेय ७० । भवनत्रयदेव देवियर्ग कल्पजस्त्रीयगं सुरौघमेयक्कुमदुकारर्णादिदमुदययोग्यप्रकृतिगलेप्पत्तेळरोळु ७७ देववर्कळगेल्लं पुंवेदमं देवियर्गेल्लं स्त्रवेदमेयक्कुमटु कारणदिदं विवक्षित देवदेवियरोळुदयप्रकृतिगळेप्पत्तारु ७६ । ई भवनत्रयजरोळं कल्पजस्त्रीयरोळं सम्यग्दृष्टिगपुट्ट - रप्पुदरिदमैसंयत गुणस्थानदोळु देवानुपूर्व्यमं कळेदु सासादननोळुदयव्युच्छित्तियं माडुतं विरल १० सासादनसम्यग्दृष्टियोळुदयव्युच्छित्तिगळ ५ । असंयतसम्यग्दृष्टियोळु दयभ्युच्छित्तिगळे टु ८ । शेषकथनमनितुं सुगम मक्कुं । संदृष्टि भवन ३ कल्प स्त्रीयोग्य ७६ मिसा मि अ Jain Education International ० उ अ १ ५ ७४ ७३ २ ३ १ ६९ ६९ ४७५ ७ ॥ ३०४ || अनुदिशांदिष्वाह अनुदिशानुत्तरचतुर्दश विमानेषु असंयत गुणस्थानमेव स्यात् । तेन उदययोग्याः सप्ततिरेव । भवनत्रयदेव - १५ देवीनां कल्पस्त्रीणां च सुरौव एव इत्युदययोग्याः सप्तसप्ततिः ॥७७॥ केवलदेवेषु देवीषु वा षट्सप्ततिः ॥ ७६ ॥ भवनत्रये कल्पस्त्रोषु च सम्यग्दृष्ट्य तुत्पत्तेरसंयत गुणस्याने देवानुपूव्यं नास्तीति प्रासादने व्युच्छित्तिः पंत्र ५ । असंयते अष्टौ ८ । शेषं सर्वं सुगमं । ५ वेदका ही उदय होता है । अतः देवोंमें स्त्रीवेद के बिना सौधर्मसे लेकर उपरिम ग्रैवेयक पयन्त स्त्रीवेद के बिना छिहत्तर उदययोग्य है । अन्य सब सामान्य देवोंकी तरह जानना ॥ ३०४ ॥ अनुदिश आदि में कहते हैं नौ अनुदिश और पाँच अनुत्तर विमानों में एक असंयत गुणस्थान ही होता है अतः वहाँ उदययोग्य सत्तर ही हैं । भवनत्रिकके देव और देवियों में तथा कल्पवासी देवांगनाओं में सामान्यदेवकी तरह उदययोग्य सतहत्तर ७७ हैं। केवल देव और देवियोंमें उदययोग्य छिहत्तर हैं । भवनत्रिक और कल्पवासी देवियों में सम्यग्दृष्टि मरकर जन्म नहीं लेता इसलिए २५ असंयत गुणस्थानमें देवानुपूर्वीका उदय नहीं होता । उसकी व्युच्छित्ति सासादन में होनेसे For Private & Personal Use Only २० www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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