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________________ ४१० गो० कर्मकाण्डे गमोळपेळल्प१दिन्नु कर्मप्रदेशंगळ प्रमाणमरियल्पडुगुमदेंते दोडमध्यमयोगाज्जितसमयप्रबद्धं द्रव्यमाबाधारहितकर्मस्थितिसंख्यातपल्यं स्थितिषल्यवर्गशलाकार्द्धच्छेदराशिहीनपल्यार्द्धच्छेदराशिनानागुणहानिभाजितस्थितिगुणहानिद्विगुणितगुणहानि दोगुणहानि नानागुणहानिप्रमितद्विक संवर्गसंजनितस्ववर्गशलाकाभक्तपल्यमन्योन्याभ्यस्तराशियक्कुमिवक्के यथाक्रमदिदमंकसंदृष्टियु५ मर्थसंदृष्टियुमिदु : द्रव्य ६३०० स्थिति । ४८ नाना ६ | गुणहानि ८ । दोमुण १६ अन्योन्या ६४ | स० प छे-व छ प । । २ । छ व छ । छ-व छ । व अनंतरं त्रिकोणरचनास्वरूपदिदमिई कर्मप्रदेशंगळ संकलितधनं तरल्पडुगुमा त्रिकोणरचनास्वरूपमते दोडनादिबंधनबद्धगलितावशेषसमयप्रबधंगळाबाधारहितोत्कृष्टकर्मस्थितिसप्ततिकोटीकोटिसागरोपमप्रमितंगळु विवक्षितवर्तमानसमयदोळे कैकनिषेकाधिकक्रमदिदं पोगि चरमसमय प्रबद्धदोळाबाधारहितोत्कृष्टकर्मस्थितिप्रमितनिषेकंगळप्पुवा समयप्रबद्धचरमगुणहानिचरमनिषेकं १० वसायेभ्यः कर्मप्रदेशाः अनंतगुणाः तद्यथा अनादिबंधनबद्धगलितावशेषसमयप्रबद्धानां आबाधारहितोत्कृष्टस्थितिः सप्ततिकोटीकोटिसागरोपमः प्रमिता, विवक्षितवर्तमानसमये एकैकनिषेकाधिकक्रमेण गत्वा चरमसमयप्रबद्धे आबाधारहितोत्कृष्टस्थितिप्रमित इन अनुभागाध्यवसाय स्थानोंसे कर्म के प्रदेश अर्थात् कर्मपरमाणु अनन्त गुणे हैं। उसे ही अंक संदृष्टिसे दिखाते हैं. एक समयमें जितने परमाणु बँधते हैं उसे समयप्रबद्ध कहते हैं। उनका प्रमाण तेरसठ सौ ६३००। कर्मकी स्थितिका प्रमाण अड़तालीस समय सो स्थिति ४८ । नानागुणहानि ६ । एक-एक गुणहानिमें जितनी स्थिति हो वह गुणहानि आयाम आठ । नानागुणहानि प्रमाण दोके अंक रख उन्हें परस्परमें गुणा करनेपर अन्योन्याभ्यस्त राशि चौंसठ । गुणहानि आयामको दूना करनेपर दो गुणहानिका प्रमाण सोलह । एक हीन अन्योन्याभ्यस्त राशि २० त्रेसठका भाग सर्वद्रव्य तेरसठ सौ में देनेपर सौ आया । सो अन्तकी गुणहानिका प्रमाण है। उससे दूना-दूना द्रव्य प्रथम गुणहानि पर्यन्त होता है । सो आधा अन्योन्याभ्यस्त राशिसे अन्तिम गुणहानिके द्रव्यको गुणा करनेपर प्रथम गुणहानिका द्रव्य आता है। सो बत्तीससे सौको गुणा करनेपर बत्तीस सौ होते हैं यही प्रथम गुणहानिका द्रव्य है। इससे दूसरी आदि गणहानियोंका द्रव्य आधा-आधा होता है-३२०० । १६००। ८०० । ४०० । २०० । १०० । २५ प्रथम गुणहानि सम्बन्धी द्रव्यको गुणहानि आयामसे भाग देनेपर मध्यधन होता है । सो बत्तीस सौमें आठसे भाग देनेपर चार सौ आये । यह मध्यधन है। एक हीन गुणहानि आयामके आधे प्रमाणको निषेक भागहाररूप दो गुणहानिमें-से घटानेपर जो प्रमाण रहे उसका भाग मध्यधनमें देनेपर जो प्रमाण आवे सो चयका प्रमाण जानना। सो एक हीन गुणहानि आयाम सातका आधा साढ़े तोनको दो गुणहानि सोलहमें-से घटानेपर साढ़े बारह ३. १. वपमाणि, वि। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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