SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 426
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७६ गो० कर्मकाण्डे गु स्वविशेषगळं होनमक्कु ४ गु ३ गु २।२।२।२ भिन्तु पंचमदिगुणहानिगळाळं तत्तद्गुणहानि प्रथमजीवद्रव्यंगळर्धा क्रमदिदं पोगियुपरितनगुणहानिगळ चरमगुणहानियोळु चरमजीवद्रव्यदोळु उपरितनरूपोननानागुणहानिमात्रद्विकंगळु हारंगळप्पुववनन्योन्याभ्यास माडिदोडे लब्धमुपरि तनान्योन्याभ्यस्तराशियद्धं हारमक्कुमागि रूपाधिकगुणहानिगुणकारमक्कुं-1४ गु ३ गु २ प ५ ००२ ५ मत्तमधस्तनगुणहानिगळोळु यवमध्याधस्तनानंतरप्रथमगुणहानिप्रथमजीवद्रव्यं मोदल्गोंडु गुणहामिगुणहानि प्रति समस्तस्थितिद्रव्यदोळु चरमगुणहानिचरमस्थितिद्रव्यपर्यन्तमेकैकस्वस्वगुणहानिप्रचयंगळं ऋणमनिक्किदोडे अधस्तननानागुणहानिशलाकाप्रमितोपरितननानागुणहानिगळ स्थितिद्रव्यंगळोळु समानमक्कुमन्तु ऋणमिक्कल्पडुत्तिरलु अधस्तनप्रथमगुणहानिप्रथमस्थितिद्रव्यमु. द्विक्रेन गुणितं तृतीयगुणहानिप्रयमद्रव्याध स्फुटं स्यात् = गु२ उपरि चथहीनं सत् चरमे रूपोन ४ गु ३-गु २ २ २ २ । ७m. गणहानिमात्रस्वविशेषहीनं स्यात - गु एवं पंचमादिगुणहानिषु तत्तदगणहानिप्रथमजीवद्रव्याणि ४ गु ३-गु २२२२ अधिक्रमण गत्वा चरमगुणहानौ चरमजीवद्रव्ये रूपोनोपरितननानागुणहानिमाद्विकानि हारा भवंति तेषामभ्यासे उपरितनान्योन्याम्पस्तराध्यधं स्यात् । गुणकारो रूपाधिकगुणहानिः स्यात् = गु ४ गु ३-गु २ प पुनरधस्तनगुणहानिषु यवमध्याधस्तनानंतरप्रथमगुणहानिप्रथमजीवद्रव्यमादि कृत्वा गुणहानि गुणहानि प्रति समस्त स्थितिद्रव्येषु चरमगुणहानिचरमस्थितिद्रव्यपयंतेषु एकैकस्वस्वगुणहानिप्रचयप्रमितऋणे निक्षिप्ते अधस्तननानागुणहानिशलाकाप्रमितोपरितननानागुणहानिस्थितिद्रव्येण समानं स्यात् तेन अधस्तनप्रथमगुणहानिप्रथम वही तीसरी गुणहानिका प्रथम निषेक जानना। यहाँ चयका प्रमाण दूसरी गुणहानिके चयसे आधा जानना । उतना चय घटानेपर द्वितीयादि निषेक होते हैं । इस तरह अन्तकी गुणहानि पर्यन्त जानना। प्रत्येक गुणहानिमें जीवोंका प्रमाण आधा-आधा होता जाता है। नीचेकी गणहानिमें यवमध्यसे नीचे प्रथम गुणहानिके प्रथम निषेकसे लगाकर अन्तकी गणहानिके अन्तिम निषेक पर्यन्त प्रत्येक गणहानिके समस्त निषेकोंमें जो-जो ऊपरकी गणहानिके निषेकोंमें प्रमाण कहा है उनमें से अपनी-अपनी गणहानिमें जितना-जितना चयका प्रमाण कहा है जतना-उतना निषेकमें घटानेपर निषेकोंका प्रमाण होता है। वही कहते हैं २. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy