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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका स्थानं गळfg मरुत्कृष्ट परिणामयोगस्थानंगल मिन्तु पत्तुं स्थानंगळं पल्यासंख्यातैकभागगुणितक्रमंगळवु । ५५/५६/५७/५८/५९/६०/६१/६२/६३/६४ | मत्तमा लब्ध्यपर्याप्त संज्ञिपचेंद्रियजीव परिणाम योगोत्कृष्टस्थानद निर्वृत्यपर्याप्तद्वींद्रियजी वैकान्तानुवृद्धियोगस्थानद पंचमांतरगतश्रेण्पसंख्यातैक भागस्थानं गळनतिक्रमिसि निर्वृत्यपर्याप्तद्वींद्रियत्रींद्रियचतुरिद्रिय असंज्ञिपंचेंद्रिय संज्ञिपंचेंद्रियजीवंगळ एकान्तानुवृद्धियोगजघन्यस्थानं गळय्दुमवरुत्कृष्टैकान्तानुवृद्धियोगस्थानंगमयिदुमन्तु पत्तुं स्थानंग प्रत्येक पत्या संख्यातैकभाग गुणितक्र मंगळवु । ६५/६६/६७।६८/६९।७० ७१ । ७२ । ७३ । ७४ ॥ मत्तमा संज्ञिपंचेंद्रिय निर्वृत्य पर्व्याप्तजी वैकान्तानुवृद्धियोगोत्कृष्टस्थानद पर्याप्तद्वींद्रियजीव परिणामयोगजघन्यस्थानद षष्ठान्तरगत श्रेण्य संख्यातैक भागस्थानं गळनतिक्रमिसि पर्याप्तद्वींद्रियत्रींद्रिय चतुरिद्रिय असंज्ञिपंचेंद्रिय संज्ञिपंचेंद्रिय जीवंगळ परिणामयोग जघन्यस्थानंग विदुमवर परिणामयोगोत्कृष्टस्थानंगळयिदु मिन्तु पत्तुं स्थानंगळं प्रत्येकं पल्या संख्यातैकभागगुणितमंगळ । ७५ । ७६ । ७७ । ७८ । ७२ । ८० । ८१ । ८२ । ८३ । ८४ ।। किंतु यदिनाकुं जीवसमासंगळ उपपादयोगमुने कान्तानुवृद्धियोगमुं परिणामयोगमुमें ब त्रिविधयोगंगळ जघन्योत्कृष्ट विषयंगळप चतुरशीतियोगस्थानंगलगल्पबहुत्वं सूक्ष्मैकेंद्रियलब्ध्यपर्याप्त जीवोपपाद योगजघन्यस्थानद अनंतरोक्तमूक्ष्मै केंद्रिय निर्वृत्यपर्य्याप्तजीवोपपादजघन्यस्थानं मोदगोंडु संज्ञिपंचे Jain Education International ३४९ For Private & Personal Use Only ५ १५ २० पुनः चतुर्यातरं श्रेण्यसंख्यातैकभागस्यानान्यतीत्य द्वित्रिचतुरसंज्ञिसंज्ञिपंचेंद्रियलब्ध्यपर्याप्तानां परिणामयोगस्य जघन्योत्कृष्टानि पत्यासंख्यतिकभागगुणितक्रमाणि ५५ । ५६ । ५७ । ५८ । ५९ । ६० । ६१ ।६२। ६३।६४ । पुन: ( तेल्लब्ध्यपर्यात संज्ञिपरिणामोत्कृष्ट निर्वृत्त्य पर्याप्त हींद्रिये कांतानुवृद्धियोगजघन्ययोरंतरगत ) श्रेण्यसंख्यातैकभागस्थानानि पंचमांतरमतीत्य द्वित्रिचतुरसंज्ञिपंचेंद्रियनिर्वृत्त्य पर्याप्तानां एकांतातृवृद्धेर्जघन्योत्कृष्टानि पत्यासंख्यातैकभागगुणक्रमाणि । ६२ । ६६ । ६७ । ६८ । ६९ । ७० । ७१ । ७२ । ७३ । ७४ । पुनः ( तत्संज्ञिनिर्वृत्त्य पर्याप्त कांतानुवृद्धियोगोत्कृष्टपर्याप्तद्वीद्रियपरिणामयोगजघन्य यो रंगतरंगत ) श्रेण्यसंख्यातैकभागस्थानानि षष्ठांत रमतीत्य द्वित्रिचतुरसंज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तानां परिणामयोगस्य जघन्योत्कृष्टानि पल्यासंख्यातगुणक्रमाणि । ७५ । है । उनको छोड़कर दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय और संज्ञी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्त के जघन्य और उत्कृष्ट परिणाम योगस्थान ये दस अनुक्रमसे पल्यके असंख्यातवें भाग गुणे हैं ५५/५६/५७/५८/५९/६०/६१/६२/६३/६४ | इसके पश्चात् पाँचवाँ अन्तर है । अर्थात् संज्ञी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकके उत्कृष्ट परिणाम योगस्थानके पश्चात् जगतश्रेणिके असंख्यातवें भाग योगस्थान ऐसे हैं जिनका कोई स्वामी नहीं है । उनको छोड़कर दोइन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चौइन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय और संज्ञी पंचेन्द्रिय निर्वृत्यपर्याप्त कके जघन्य और उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धि योगस्थान ये दस अनुक्रमसे पल्यके असंख्यातवें भाग गुणे हैं ६५ । ६६।६७|६८|६९/७०/७१/७२/७३।७४ | इसके पश्चात् छठा अन्तर है । अर्थात् संज्ञी पंचेन्द्रिय निर्वृत्यपर्याप्त कके उत्कृष्ट एकान्तानुवृद्धि योगस्थानके पश्चात् जगतश्रेणिके असंख्यातवें भाग ३० प्रमाण योगस्थान ऐसे हैं जिनका कोई स्वामी नहीं है । सो इनको छोड़कर दोइन्द्रिय, इन्द्रिय, चौइन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय और संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त कके जघन्य और उत्कृष्ट २५ १. . संख्या । २. - ३. कोष्ठकान्तर्गतपाठो नास्ति ब प्रतौ । १० www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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