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________________ ३४४ गो० कर्मकाण्डे णिव्वत्तिसुहुमजेडं बादरणिव्यत्तियस्स अपरं तु । बादरलद्धिस्स बरं बीइंदियलद्धिगजहण्णं ॥२३४॥ निवृत्तिसूक्ष्मोत्कृष्टं बादरनिवृत्तेरवरं तु । बादरलब्धेवरं द्वौद्रियल ब्धिजघन्यं ॥ निर्वृत्तिसूक्ष्मोत्कृष्टं आ बादरलब्ध्यपर्याप्तजीवजघन्योपपादयोगस्थानमं नोडलु निवृत्य. ५ पर्याप्तसूक्ष्मजीवोत्कृष्टोपपादयोगस्थानं पल्यासंख्यातक भागगुणितमक्कू ५। तु पुनः मत्तमदं नोउलु बादरनिर्वृत्तेरवरं बादरनिर्वृत्यपर्याप्तजीवजघन्योपपादयोगस्थानं पल्यासंख्यातेकभागगुणितमक्कु ।६। मदं नोडलु बादरलब्धेर्वरं बादरलब्ध्यपर्याप्त जीवोपपादयोगोत्कृष्टस्थानं पल्यासंख्यातयिकभागगुणितमक्कु ।७। मदं नोडलु द्वींद्रियलब्धेजघन्यम् (द्रियलब्ध्यपर्याप्तजीवोपपावजयत्ययोगस्थानं पल्यासंख्यातेकभागगुणितमक्कुं ।८॥ बादरणिव्वत्तिवरं णिव्वत्तिबिइंदियस्स अवरमदो। एवं वितिवितितिचतिच चउविमणो होदि चउविमणो ॥२३५।। बादरनिर्वृत्तिवरं निवृत्तिद्वींद्रियस्याऽवरं अवरः। एवं द्वित्रिद्वित्रित्रिचतुश्चतुस्त्रिचतुर्दिधमनो भवति चतुर्दिवमनः॥ __आ द्वींद्रियलब्ध्यपर्याप्तजीवजघन्योपपादयोगस्थानमं नोडलु बावरैकेंद्रियनिवृत्तिवरं १५ बादरैकेंद्रियनिवृत्यपर्याप्तजीवोपपादयोगोत्कृष्टस्थानं पल्यासंख्याकभागगुणितमक्कु ।९॥ मतः अवं नोडलु द्वींद्रियनिवत्तरवरं निर्वृत्यपर्याप्तद्वींद्रियजीवोपपादजघन्ययोगस्थानं पल्यासंख्यातगुणित मक्कुं।१०। एवं ई प्रकारदिदं द्वित्रिलब्ध्यपर्याप्त द्वींद्रियत्रींद्रियजीवंगळ यथासंख्यमागि उत्कृष्ट. जघन्योपपादयोगस्थानंगळु पल्यासंख्यातेकभागगुणितक्रमंगळप्पुवु। उ। ज। अवं नोडलु द्वित्रि ११ १२ ततः सूक्ष्मनिवृत्त्यपर्याप्तस्य तदुत्कृष्टं पल्यासंख्यातगुणं ! ५ । तु-पुनः ततो बादरनिर्वृत्त्यपर्याप्तस्य २० तज्जघन्यं पल्यासंख्यातगुणं ६ । ततः बादरलब्ध्यपर्याप्तस्य तदुकृष्टं पल्यासंख्यातगुणं ७ । ततः द्वौद्रियलब्ध्यपर्याप्तस्य तज्जघन्यं पल्यासंख्यातगणं ॥८।। २३४।। ततो बादरैकेंद्रियनिर्वृत्त्यपर्याप्तस्य तदुत्कृष्ट पल्यासंख्यातगुणं ९। अतः द्वींद्रियनित्यपर्याप्तस्य तज्जघन्यं पल्यासंख्यातगुणं १० । एवं लब्ध्यपर्याप्तद्वितींद्रिययोर्यथासंख्यं तदुत्कृष्टजघन्योपपादयोगस्याने marrrrrrrrrrrrrrrउससे सूक्ष्म नित्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट उपपाद योगस्थान पल्यके असंख्यातवें भाग २५ गुणा है ५ । उससे बादर निर्वृत्यपर्याप्तकका जघन्य उपपाद योगस्थान पल्यके असंख्यातवें भाग गुणा है ६। उससे बादर लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट उपपाद योगस्थान पल्यके असंख्यातवें भाग गुणा है ७। उससे दो इन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका जघन्य उपपाद योगस्थान पल्यके असंख्यातवें भाग गणा है ८॥२३४।। उससे बादर एकेन्द्रिय निवृत्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट उपपाद योगस्थान पल्यके असंख्यातवें ३० भाग गुणा है ९। उससे दो इन्द्रिय निवृत्यपर्याप्त कका जघन्य उपपाद योगस्थान पल्यके असंख्यातवें भाग गुणा है. १०। इसी प्रकार उससे दो इन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तकका उत्कृष्ट और Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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