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________________ ३१० गो० कर्मकाण्डे गनंतरं मुन्नं पेळल्पट्ट "अविभागपडिछेदो वग्गो पुण वग्गणाय पड्ढयगो। गुणहाणी वियजाणे ठाणं पडि होदि णियभेण" एंबी सूत्राथमिल्लि विशदमक्कुमप्पुदरिदं पेल्पडुगुमे ते दोडेकिं स्थानं नाम । एकसमये एकस्य जीवस्य संभवद्गुणहानिसमूहः स्थानम् । का गुणहानिः स्पर्द्धक समूहः। किं स्पर्द्धकं क्रमवृद्धिहानिवर्गणासमूहः। का वर्गणा वर्गसमूहः। को वर्गः अविभाग५ प्रतिच्छेदसमूहः । को विभागप्रतिच्छेदः जीवप्रदेशस्य कर्मादानशक्त्यां जघन्यवृद्धिः योगस्याधिकृ तत्वात् एंदितिल्लि जघन्यवृद्धिप्रमाणमावुदे दोडे लोकमात्रजीवप्रदेशंगळं स्थापिसि = अल्लि सर्वजघन्यशक्तिविशिष्टमप्पेकप्रदेशमं कोंडु । १ । तत्प्रदेशगतशक्तियं बुद्धियिदं प्रसारिसि मत्तमा प्रदेशशक्तियं नोडल विभागप्रतिच्छेदोत्तरशक्तिविशिष्टप्रदेशमं कोडु।१। तत्प्रदेशगतशक्तियं मुन्नं प्रसारितप्रदेशशक्तिय मेले प्रसारितं माडि अधिकप्रमादिदं प्रथमप्रसारितप्रदेशशक्तियं खंडिसुत्तिरलु १० असंख्यातलोकमात्राविभागप्रतिच्छेदंगळप्पुवु ||||||||| तत्समूहं वर्गम बुदक्कुं। मत्तं तज्जघन्य शक्तियुक्तप्रदेशसदृशघनिकंगमसंख्यातप्रतरमात्रप्रदेशंगळपावq श्रेण्यसंख्यातैकभागप्रमितद्वयर्द्ध ___ "अविभागपडिच्छेदो वग्गो पुण वग्गणा य फट्टयगं । गुणहाणीविय जाणे ठाणं पडि होदि णियमेण ॥" इति सूत्रार्थं पुनर्विशदयति किं स्थानं ? एकसमये एकस्य जीवस्य संभवद्गुणहानिसमूहः। का गुणहानिः ? स्पर्धकसमूहः । १५ कि स्पर्धक? क्रमवृद्धिहानिवर्गणासमहः । का वर्गणा ? वर्गसमहः । को वर्ग:? अविभागप्रति च्छेदसमूहः । कोऽविभागप्रतिच्छेदः ? जीवप्रदेशस्य कर्मादानशक्ती जघन्यवृद्धिः योगस्याधिकृतत्वात् । कि तज्जघन्यवृद्धिप्रमाणं ? लोकमात्रजीवप्रदेशान् संस्थाप्य एषु सर्वजधन्यशक्तिकमेकं प्रदेश स्वीकृत्य १ तद्गतशक्ति बुद्धया प्रसार्य पुनः ततोऽविभागप्रतिच्छेदोत्तरप्रदेशं स्वीकृत्य १ तद्गतशक्ति पूर्वप्रसारितशक्तरुपरि प्रसार्य अधिकप्रमाणेन प्रथमप्रसारितप्रदेशशक्तौ खंडितायां असंख्यातलोकमात्रा२० विभागप्रतिच्छेदा भवंति ।।।।।।।। || = a तत्समूहो वर्गः । स व इति संदृष्टया लिखितव्यः । तदने तत्सदशधनिकाः यावंतस्तातो लिखितव्याः । ते च असंख्यातलोकप्रतरमात्राः, श्रेण्यसंख्यातकभागमाच्या अविभागप्रतिच्छेद, वर्ग, वर्गणा, स्पर्धक, गुणहानि और स्थान ऊपर कहे हैं । एक जीवके एक समयमें होनेवाले गुणहानि समूहको स्थान कहते हैं। स्पर्धकोंके समूहको गुण हानि कहते हैं। क्रमसे वृद्धिहानिरूप वर्गणाओंके समूहको स्पर्धक कहते हैं। वर्गके समूहको २५ वर्गणा कहते हैं। और अविभागप्रतिच्छेदोंके समूहको वर्ग कहते हैं। जीवके प्रदेशोंमें कर्मको ग्रहण करनेकी शक्तिमें जो जघन्य वृद्धि होती है उसे अविभाग प्रतिच्छेद कहते हैं । यहाँ योगका अधिकार होनेसे योगरूप शक्तिके अविभागी अंशका ग्रहण किया है। आगे जघन्य वृद्धिका प्रमाण कहते हैं जीवके प्रदेश लोकप्रमाण हैं। उनको स्थापन करके इन सब प्रदेशों में से जिस प्रदेश में ३० योगों की जघन्य शक्ति पायी जाये, उस प्रदेशको अलग रखकर उस प्रदेशमें जितनी योगशक्ति हो उसको अपनी बुद्धिसे फैलाइये। उस जघन्य शक्तिसे अधिक और अन्य शक्तिसे हीन शक्ति जिसमें पायी जाये ऐसे किसी अन्य प्रदेशको ग्रहण करके, उसमें जितनी योगशक्ति पायी जाये उसे पहले फैलायी गयी जघन्य शक्तिके ऊपर बुद्धिसे ही फैलाइए । सो उस Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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