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गो. जीवकाण्ड
छठे सूत्रमें कहा है-मिध्यादृष्टिसे लेकर सूक्ष्मसाम्पराय उपशामक और क्षपक उक्त प्रकृतियों के बन्धक है । सूक्ष्मसाम्परायके अन्तिम समयमें उक्त प्रकृतियोंके बन्धका विच्छेद होता है अतः ये बन्धक है, शेष अबन्धक है।
इसी प्रकार सूत्रोंमें प्रत्येक प्रकृतिके बन्ध और प्रबन्धके सम्बन्धमें प्रश्न और उत्तर किया गया है। इसीके आधारपर गोम्मटसारमें गुणस्थानों और मार्गणाओं में बन्ध, अबन्ध और बन्धव्युच्छित्तिका विचार किया गया है।
पांचवें सूत्रको धवलाटोकामें वीरसेन स्वामीने सूत्रको देशामर्षक मानकर तेईस प्रश्न उठाये हैं और उनका समाधान किया है । वे प्रश्न इस प्रकार है
१. किन प्रकृतियोंकी बन्धव्युच्छित्ति उदयव्युच्छित्तिसे पूर्व होती है ? २. किन प्रकृतियोंकी उदयव्युच्छित्ति बन्धव्युच्छित्तिसे पूर्व होती है ? ३. किनकी दोनों व्युच्छित्ति एक साथ होती हैं ? ४. अपने उदयमें बन्ध किनका होता है ? ५. परप्रकृतियोंके उदय बन्ध किनका होता है? ६. अपने और परके उदयमें बंधनेवाली प्रकृतियां कौन है ? ७. सान्तरबन्धी कौन है? ८. निरन्तरबन्धी कौन है ? ९. सान्तर-निरन्तरबन्धी कौन है ? १०. सनिमित्तक बन्ध किनका होता है? ११. अनिमित्तक बन्ध किनका है ? १२. "मतिके साथ बंधनेवाली कौन प्रकृतियां हैं ? १३. गति के बिना बंधनेवाली प्रकृतियों कोन हैं ? १४. कितनी गतिवाले जीव किन प्रकृतियोंके स्वामी हैं ! १५. कितनी गतिवाले स्वामी नहीं हैं ? १६. बन्धकी सीमा किस गुणस्थान तक है ? १७. क्या अन्तिम समयमें बन्धकी व्युच्छित्ति होती है ? १८. क्या प्रथम समयमें बन्धकी व्युच्छित्ति होती है ? १९. या बीचके समयमें बन्धकी व्युच्छित होती है ? २०. किनका बन्ध सादि है ? २१. किनका बन्ध अनादि है ? २२. किनका बन्ध ध्रुव है ? २३. किनका बन्ध अध्रव है ?
इन प्रश्नोंमें-से वीरसेन स्वामीने विषम प्रश्नोंका उत्तर दिया है । चूंकि बन्धव्युच्छेदका कथन सूत्रोंमें ही है अतः उसे छोड़कर उदयव्युच्छेदका कथन किया है । और उसके अन्तमें एक उपसंहार गाथा दी है
दस चदुरिगि सत्तारस अट्ठ य तह पंच चेव चउरो य ।
छच्छक्क एग दुग दुग चोद्दस उगुतीस तेरसुदय विदी। यह गाथा कर्मकाण्डके, उदय प्रकरणमें है और इसका क्रमांक २६३ है । इस उदयव्याच्छत्तिको
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