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________________ गो० कर्मकाण्डे मूलप्रकृतिघातिकम्मंगळ स्वस्वसमस्तद्रव्यंगळोळनन्तेक भागमनतैकभागंगळु सवघाति. प्रकृति संबंधिद्रव्यंगळवु -- १० २३० 1 णास । १ ८। ख बद्धद्रवमंगळप्पु दंस । १ ८। ख मोह ! अन्तरा । स।१ स a १ ८। ख ८ 01 । णास । ख दंस । ख मो स० ख ८। ख ८। ख ८ ख वेदितु मुन्नं पेळपट्टुवल्लि सर्व्वावरणद्रव्यं सर्व्वघातिगळोळं देशघातिगळोळं होनक्रमविद ५ बिभागिसि कुडल्पडुगुं । देशावरणद्रव्यं देशावरणंगळोळे विभागिसि कुडल्पडुवुदितर सर्व्वघातिगोळ विभागसि कुडल्पडदु ॥ बहुभागंगळु देशघातिप्रकृतिप्रति Jain Education International अन्त स ८ अनन्तरमुत्तरप्रकृतिगो द्रव्यविभंजनक्रममं पेळदपरु : बहुभागे समभागो बंधाणं होदि एक्कभागम्हि । उत्तम तत्थवि बहुभागो बहुगस्स देओ दु ॥ २००॥ बहुभागे समभागो "बंधानां भवति एक मागे । उक्त क्रमस्तत्रापि बहुभागो बहुकस्य तु ॥ "बंधानां बंधकालदो युगपदबंधंगळागुत्तं विदुर्दुत्तरप्रकृतिगळगे बहुभागे आवल्य संख्यातैकभागमात्र प्रतिभागदिदं भागिसल्पट्टस्वस्वद्रव्यबहुभाग दोळु समभागः समनागि भागं कुडल्पडुगुं । घातिकर्मणां स्वस्वसमस्तद्रव्यस्यानन्तकभागः सर्वघ । तिद्रव्याणि बहुभागो देशघातिद्रव्याणि इति १५ प्रागुक्तानि । तत्र सर्वावरणद्रव्यं सर्वघातिषु देशघातिषु च होनक्रमेण भक्त्वा देयं देशावरणद्रव्यं तु देशावरणेष्वेव न सर्वघातिषु ॥ १९९ ।। अथोत्तरप्रकृतिषु आह सहसंभवद्बन्धोत्तर प्रकृतीनां आवल्यसंख्यातैकभागभक्तस्वस्वद्रव्यस्य बहुभागे समभागी देयः । एकभागे घातिकर्मो के अपने-अपने द्रव्य में अनन्तका भाग देवें । एक भाग प्रमाण तो सर्वघाति द्रव्य है और बहुभाग प्रमाण देशघाती द्रव्य है । यह पहले कहा है । उसमें से सर्वघाति द्रव्य २० तो सर्वघाति और देशघाति प्रकृतियोंमें हीनक्रमसे विभाग करके देना चाहिए | किन्तु देशघाती द्रव्य देशघाति प्रकृतियों में ही देना चाहिए, सर्वघाति प्रकृतियोंमें नहीं देना चाहिए || १९९|| आगे उत्तर प्रकृतियों में विभाग कहते हैं अपने-अपने पिण्डरूप द्रव्यमें आवलीके असंख्यातवें भागसे भाग देकर बहुभाग एक २५ साथ बँधनेवाली उत्तर प्रकृतियोंको बराबर-बराबर समभाग करके देना चाहिए। शेष एक १. म बद्धानां २. बद्धानां ३, मंद्वद्धंग ।° For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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