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कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
१६१ मिन्ते नाल्कुं नाल्कुं स्थितिबंधविकल्पंगळु तंतम्म मिथ्यात्वप्रकृतिसर्वस्थितिबंधविकल्पंगळोळप्युवें दिन्ती मिथ्यात्वप्रकृतिस्थितिबंधं पेळल्पदुदु। अदेंतेदोडे त्रोंद्रियपर्याप्तोत्कृष्टस्थितिबंधमुं। त्रौंद्रियापर्याप्तोत्कृष्टस्थितिबंधमुं । त्रों द्रियापर्याप्तजघन्यस्थितिबंधमुं । त्रींद्रियपर्याप्तजघन्यस्थितिबंधमु दितिवु नाल्कुं४, चतुरिद्रियपर्याप्तोत्कृष्टस्थितिबंधमुं। चतुरिद्रियापर्याप्तोत्कृष्टस्थितिबंधमुं । चतुरिंद्रियापर्याप्तजघन्यस्थितिबंधमुं । चतुरिद्रियपर्याप्तजघन्यस्थितिबंधमुमें दितिवु ५ नाल्कु ४, असंज्ञिपर्याप्तोत्कृष्टस्थितिबंधमुं असंश्यप-प्रोत्कृष्टस्थितिबंधमुं असंध्यपर्याप्तजघन्यस्थितिबंधमुमसंजिपर्याप्तजघन्यस्थितिबंधमुमदितिवु नाल्कु ४, संज्ञिपर्याप्तोत्कृष्टस्थितिबंधमुं संश्यपर्याप्तोत्कृष्टस्थितिबंधमुं संज्यपर्याप्तजघन्यस्थितिबंधमुं संजिपर्याप्तजघन्यस्थितिबंधमुमें
त्रीन्द्रियादिसंज्ञिपञ्चेन्द्रियपर्यन्तानामपि वचनीयं-कथनीयम् । तद्यथा
त्रीन्द्रियपर्याप्तकोत्कृष्टः त्रीन्द्रियापर्याप्तकोत्कृष्टः श्रीन्द्रि यापर्याप्तकजघन्यः त्रीन्द्रियपर्याप्तकजघन्यश्चेति १० त्रीन्द्रियस्य चत्वारः । चतुरिन्द्रियपर्याप्तकोत्कृष्टः चतुरिन्द्रियापर्याप्तकोत्कृष्टः चतुरिन्द्रियापर्याप्तकजघन्यः चतुरिन्द्रियपर्याप्तकजघन्यश्चेति चतुरिन्द्रि यस्य चत्वारः । असंज्ञिपर्याप्तकोत्कृष्टः असंश्यपर्याप्तकोत्कृष्टः असंश्यपर्याप्तकजघन्यः असंज्ञिपर्याप्तकजघन्यश्चेति असंज्ञिपञ्चेन्द्रियस्य चत्वारः। संज्ञिपर्याप्तकोत्कृष्टः, संश्यपर्याप्तकोत्कृष्टः, संध्यपर्याप्तकजघन्यः, संज्ञिपर्याप्तकजघन्यश्चेति संज्ञिपञ्चेन्द्रियस्य चत्वार। अमीष अष्टाविंशतिस्थितिबन्धविकल्पेष अन्त्यानां चतुर्णां पृथक्कथनमस्ति इति आदौ आद्यानामायाममानेतं अन्तराल- १५ विकल्पान् राशिकैविभजति
तत्रैकेन्द्रियस्य यथा मिश्यात्वस्थितिरुत्कृष्टा एकसागरोपममात्री सा १ । जघन्या च रूपोनपल्यासंख्येय
बन्धके विकल्प कहे हैं। इस प्रकार द्वीन्द्रियकी कही उक्त रीतिसे पर्याप्तक, अपर्याप्तक और उनके उत्कृष्ट जघन्यके भेदसे चार विकल्प शेष त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञिपञ्चेन्द्रिय तथा संज्ञिपञ्चेन्द्रियके कहना चाहिए। जो इस प्रकार हैं-त्रीन्द्रिय पर्याप्तककी उत्कृष्ट स्थिति, २० त्रीन्द्रिय अपर्याप्तककी उत्कृष्ट स्थिति, त्रीन्द्रिय अपर्याप्तककी जघन्यस्थिति, त्रीन्द्रिय पर्याप्तककी जघन्य स्थिति इस प्रकार त्रीन्द्रियके चार विकल्प हैं । चतुरिन्द्रिय पर्याप्तककी उत्कृष्ट स्थिति, चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक की उत्कृष्ट स्थिति, चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तककी जघन्य स्थिति, चतुरिन्द्रिय पर्याप्तककी जघन्य स्थिति इस प्रकार चतुरिन्द्रियके चार विकल्प कर्मोंकी स्थितिके हैं। असंज्ञि पर्याप्तककी उत्कृष्ट स्थिति, असंज्ञि अपर्याप्तककी उत्कृष्टस्थिति, असंज्ञी अपर्याप्तककी ६५ जघन्य स्थिति, असंज्ञी पर्याप्तककी जघन्य स्थिति ये चार विकल्प असंज्ञी पञ्चेन्द्रियकी कमस्थितिके हैं। संज्ञीपर्याप्तककी उत्कृष्ट स्थिति, संज्ञो अपर्याप्तककी उत्कृष्टस्थिति, संज्ञ अपर्याप्तककी जघन्य स्थिति, संज्ञीपर्याप्तककी जघन्य स्थिति ये चार विकल्प संज्ञी पञ्चेन्द्रियके हैं। स्थितिबन्धके इन अठाईस विकल्पोंमें अन्तिम चारका पृथक कथन है। इसलिए आदिमें शेष चौबीस भेदोंकी स्थितिका आयाम लानेके लिए अन्तराल भेदोंका त्रैराशिकोंके द्वारा ३० विभाजन करते हैं
उनमें से एकेन्द्रियके मिथ्यात्वको उत्कृष्ट स्थिति एक सागर प्रमाण है और जघन्यस्थिति एक कम पल्यके असंख्यातवें भागसे हीन एक सागर प्रमाण है । सो करणसूत्रके अनुसार आदि जघन्य स्थितिको अन्त उत्कृष्ट स्थितिमें-से घटानेपर जो प्रमाण शेष रहे उसको क-२१
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