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________________ कर्णाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका १५२ शेषाष्टादश षोडश पंचदश चतुर्दश द्वादश वशकोटीकोटिसागरोपम स्थितिय प्रकृतिगळमी प्रकारदिदमेकेंद्रियादिजीवंगळगे त्रैराशिकविधानदिदं जघन्यस्थितिबंधं साधिसल्पडुवुदु । अनंतरमी एकेंद्रियादिगळ मिथ्यात्वादि प्रकृतिगळगे पेकर जघन्योत्कृष्टस्थितिबंधगळनरिदु तरल्पट्ट स्थितिविकल्पंगळं प्रत्येकं स्थापिसि । एके द्वी | त्रीं । चतु| असं संज्ञि प प प प प a १।४/१ । ३२२१॥ ११११| एकेंद्रियंगल बादरसूक्ष्मपर्याप्ताऽपर्याप्तंगळ उत्कृष्टजघन्यमं द्वौद्रियपर्याप्तापर्याप्तोत्कृष्ट- ५ जघन्यंग मं त्रींद्रियपर्याप्तापर्याप्तोत्कृष्टजघन्यंगळमं चतुरिंद्रियपर्याप्ताऽपर्याप्तोत्कृष्टजघन्यंगळुमसंज्ञिपंचेंद्रियपर्याप्तापर्याप्तोत्कृष्टज धन्यंगळमं संजिपंचेद्रियपर्याप्तापर्याप्तोत्कृष्टजघन्यंगळुमं मिथ्यास्वादिप्रकृतिस्थितिबंधविकल्पंगळोळ विभागिसि तोरिदपर : बासूप बासूअ वरद्विदीओ सूवाअ सूबापजहण्णकालो। बीबीवरो बीविजहण्णकालो सेसाणमेवं वयणीयमेदं ॥१४८॥ बा । बादरश्च । सू। सूक्ष्मश्च बादरसूक्ष्मौ तयोः प। पर्याप्तको बादरसूक्ष्मपर्याप्तको । बा। बादरश्च । सू । सूक्ष्मश्च बावरसूक्ष्मो तयोरपर्याप्तको बावरसूक्ष्मापर्याप्तको। बादरसूक्ष्मपतिको च बादरसूक्ष्मापर्याप्त कौ च बावरसूक्ष्मपर्याप्रकबादरसूक्ष्मापाप्रकाः। तेषां वरस्थितयः तास्तथोक्ताः॥ सू। सूक्ष्मश्च बा बावरश्च सूक्ष्मबादरौ । तयोरपर्याप्तको सूक्ष्मबादरापर्याप्तको। १५ सू। सूक्ष्मश्च बा बादरश्च सूक्ष्मबादरौ। तयोःप पर्याप्तको सूक्ष्मबादरपर्याप्तको । सूक्ष्मबादराs साधयेत् ॥१४७॥ उक्तैकेन्द्रियादिस्थितिविकल्पान संस्थाप्य एकें । द्वीं चतु असं संज्ञि १ प तेषु बादरसूक्ष्मैकद्वित्रिचतुरिन्द्रियासंज्ञिसंज्ञिनां पर्याप्तापर्याप्तभेदेन चतुर्दशानां उत्कृष्टजघन्यस्थितिबन्धी विभज्य दर्शयति बा-बादरश्च सू-सूक्ष्मश्च बादरसूक्ष्मी, तयोः प-पर्याप्तको बादरसूक्ष्मपर्याप्त को । बा-बादरश्च सू-सूक्ष्मश्च २० प्रमाण आता है। इसी प्रकार जिन कर्मोकी उत्कृष्ट स्थिति अठारह, सोलह, पन्द्रह, चौदह, बारह और दस कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है उनके भी जघन्यस्थितिबन्धका प्रमाण लाना चाहिए ॥१४७॥ उक्त एकेन्द्रिय आदिके स्थितिभेदोंको स्थापित करके उनमें बादर और सूक्ष्म एकेन्द्रिय तथा दो इन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय, असंज्ञी और संज्ञी इनके पर्याप्त और २५ अपर्याप्तके भेदसे चौदह जीव समासोंमें उत्कृष्ट और जघन्य स्थितिबन्धका विभाग करके दर्शाते हैं __'बा' अर्थात् बादर, 'सू' अर्थात् सूक्ष्म, ये दोनों 'प' अर्थात् पर्याप्तक-बादर पर्याप्तक, सूक्ष्मपर्याप्तक । 'बा' अर्थात् बादर, 'सू' अर्थात् सूक्ष्म, ये दोनों अपर्याप्तक-बादर अपर्याप्तक, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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