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कणाटवृत्ति जीवतत्त्वप्रदीपिका
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कटुव जघन्यस्थितिप्रमाणं सा १०० ।। २ मत्तमन्ते प्र सा ७० । को २। फ सा १००० ।।
व
प
।२।
इ सा ४० । को २। बंद लब्धमसंज्ञिजीवं चाळोसियंगळगे कटुव जघन्यस्थितिप्रमाणमक्कुसा १००० ।। ४ मत्तमन्ते प्रसा ७० । को २। फ सा १००० । इसा ३० । को २ । बंद
लब्धमसंज्ञिजीवं तिसियंगळगे कटुव जघन्यस्थितिप्रमाणमक्कुं। सा १००० ।। ३ मत्तमंत प्र
सा १००
इ सा २० को २ लब्धं तस्य वीसियानां जघन्यस्थितिबन्धप्रमाणं भवति सा १००। २ ५
प
प १२
। २ पुनस्तथा प्र सा ७० को २ । फ ज सा १०००। इसा ४० को २ लब्धं असंज्ञिनः चालीसियानां जघन्य
स्थितिबन्धप्रमाणं भवति सा १०००
४ पुनस्तथा प्र-सा ७० को २। फ-ज सा १०००
इ सा
....
३० को २ लब्धं असंज्ञिनः तोसियानां जघन्यस्थितिबन्धप्रमाणं भवति सा १०००। ३ पुनस्तथा प्र-सा
सागर प्रमाण उत्कृष्ट स्थितिवाला मिथ्यात्वकर्मका जघन्यस्थितिबन्ध यदि चतुरिन्द्रियके पल्यके संख्यातवे भागहीन सौ सागर प्रमाण होता है तो जिन कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थिति १० चालीस, तीस या बीस कोड़ाकोड़ी सागर प्रमाण है उनका जघन्य स्थितिबन्ध चतुरिन्द्रियके कितना होता है इस प्रकार त्रैराशिक करनेपर प्रमाण राशि सत्तर कोड़ाकोड़ी सागर, फलराशि पल्यके संख्यातवें भागहीन सौ सागर, इच्छाराशि चालीस, तीस या बीस कोडाकोड़ी सागर । फलसे इच्छा राशिको गुणा करके प्रमाण राशिसे भाग देनेपर चतुरिन्द्रिय जीवके उस-उस कमेकी जघन्य स्थितिका प्रमाण आता है। तथा सत्तर कोड़ाकोड़ी सागरकी स्थिति- १५ वाला मिथ्यात्वकर्म यदि असंज्ञि पञ्चेन्द्रियके पल्यके संख्यातवें भागहीन एक हजार सागर प्रमाण जघन्य स्थितिको लेकर बंधता है तो जिन काँकी उत्कृष्ट स्थिति चालीस, तीस या बीस सागर प्रमाण है उनका जघन्य स्थितिबन्ध असंजीके कितना होता है ऐसा त्रैराशिक करनेपर प्रमाणराशि सत्तर कोडाकोड़ी सागर, फलराशि पल्यके संख्यातवें भागहीन हजार .
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