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________________ ११४ गो० कर्मकाण्डे दर्शनमागणेयोळ चक्षुरचक्षुद्देर्शनद्वयक बंधयोग्यप्रकृतिगळ १२० अप्प। गुणस्थानगळ मिथ्यादृष्टयादि १२ अप्पुवु । इल्लि गुणस्थानसामान्यदोळतंत बंधव्युच्छित्ति बंधाबंधप्रकृतिगळरियल्पडुगुं। अवधिदर्शनक्के बंधयोग्यप्रकृतिगळु अवधिज्ञानदोळ्पेळ्दंते योग्यप्रकृतिगळ ७९ गुणस्थानंगळं असंयतादि ९ अप्पुवु । केवलदर्शनक्के केवलज्ञानक्के पेळ्दंतैयक्कुं। . ___लेश्यामार्गणेयोळ कृष्णनीलकपोतंगळगे बंधयोग्यप्रकृतिगळ, ११८ अप्पुषे ते दोर्ड असंयतनोळु तीथंबंधमंटु। आहारकद्विकमे कळे दुबुदत्थं । गुणस्थानंगळ, मिथ्यादृष्टयादिचतुर्गुणस्थानंगळप्पुवु । बंधव्युच्छित्ति बंधाबंधगमनिकयु गुणस्थानदोळपेन्द सामान्यकथनमेय क्कुं। तेजःपद्मशुक्ललेश्येगळ्गे गाथाद्वयदिदं बंधयोग्यप्रकृतिगळं पेळ्दपर। णवरि य सव्वुवसम्मे परसुरआऊणि पत्थि णियमेण । मिच्छस्संतिमणवयं वारं ण हि तेउपम्मेसु ।।१२०॥ सुक्के सदरचउक्कं वामंतिमबारसं च ण च अस्थि । कम्मेव अणाहारे बंधस्संतो अणंतो य ॥१२१॥ नवीनं च सर्वोपशमसम्यक्त्वे नरसुरायुषी न स्तः नियमेन । मिथ्यादृष्टेरंत्यनावकं द्वादश च न हि तेजःपद्मयोः॥ शुक्ले शतारचतुष्क वामांत्यद्वादश च न च संति । कार्मणे इव अनाहारे बंधस्यांतोऽ. नंतश्च ॥ तेजोलेश्येयोळ बंधयोग्यप्रकृतिगळु १११ अप्पुर्वतेंदोडे मिथ्यादृष्टिय कडेय सूक्ष्मत्रयादि नवप्रकृतिगळ कळे दु तावन्मानं गळप्परिवं । अल्लि गुणस्थानंगळ मिथ्यादृष्टयाद्यप्रमत्तावसान दर्शनमार्गणायां चक्षुरचक्षुर्दर्शनयोर्बन्धयोग्यम् १२० । मिथ्यादृष्ट्यादिद्वादशगुणस्थानोक्तबन्धाबन्धव्यच्छित्तयो ज्ञातव्याः । अवधिदर्शने अवधिज्ञानवद्बन्धयोग्याः ७९ । गुणस्थानानि असंयतादीनि ९ । केवलदर्शने केवलज्ञानवत । लेश्यामार्गणायां कृष्णनीलकपोतानां बन्धयोग्यं ११८ आहारकद्विकाभावात् । गुणस्थानानि मिथ्यादष्टयादीनि चत्वारि बन्धाबन्धव्युच्छित्तयस्तद्वत् ॥११९॥ शुभलेश्यानां गाथाद्वयेनाह तेजोलेश्यायां बन्धयोग्यं १११ मिथ्यादृष्टश्चरमसूक्ष्मत्रयादिनवानामभावात् । गुणस्थानानि आद्यान्येव दर्शनमार्गणामें चक्षु अचक्षुदर्शनमें बन्धयोग्य एक सौ बीस हैं। मिथ्यादृष्टिसे लेकर २५ बारह गुणस्थानों में कहे अनुसार बन्ध, अबन्ध और व्युच्छित्ति जानना। अवधिदर्शनमें अवधिज्ञानकी तरह बन्धयोग्य उनासी हैं। गुणस्थान असंयत आदि नौ हैं। केवल दर्शनमें केवलज्ञानकी तरह जानना। लेश्यामार्गणामें कृष्ण नील कपोतमें बन्धयोग्य एक सौ अठारह हैं, आहारकद्विक नहीं है। गुणस्थान मिध्यादृष्टि आदि चार हैं। गुणस्थानोंकी तरह ही बन्ध अबन्ध और व्युच्छित्ति होती है ॥११९॥ शुभलेश्याओं में दो गाथाओंसे कहते हैं तेजोलेश्यामें बन्धयोग्य एक सौ ग्यारह हैं क्योंकि मिथ्यादृष्टि में व्युच्छिन्न होनेवाली सोलह प्रकृतियों में से अन्तकी सूक्ष्मत्रिक आदि नौका अभाव है। गुणस्थान आदिके सात २० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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