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________________ ५ १० ५४ गो० कर्मकाण्डे ओहिमण पज्जवाणं पडिघादणिमित्त संकिलेसयरं । जं बज्झट्टं तं खलु णोकम्मं केवले णत्थि ॥ ७१ ॥ अवधिमन:पर्यययोः प्रतिघातनिमित्त संक्लेशकरो यो बाह्यार्थस्तत्खलु नोक केवले नास्ति ॥ अवधिमनः पयज्ञानं गळणे प्रतिघातनिमित्तमप्प संक्लेशमं पुट्टिसुव यदबाह्यं वस्तु आदों बाह्यवस्तु । तत् अदु । नोक नोकद्रव्यकम्मं मक्कुं । केवलज्ञानावरणक्क नोक द्रव्यक मिल्लेक बोर्ड केवलज्ञानं क्षायिकमेयप्पुदरिदं तत्प्रतिबंधकमप्य संक्लेशकारि बाह्यवस्तु विलप्रदं । अवधिमनः पय्यंयज्ञानंगळु क्षायोपशमिकंगळप्पुदरिदं तत्प्रतिघातनिमित्तसंक्लेशकारिबाह्यवस्तुगलवधिमनः पर्ययज्ञानावरणंगळंते व्याघातकारिगळोलवे बुदु तात्पथ्यं ॥ ३० पंचन्हं णिद्दाणं माहिसदहिपहुडि होदि णोकम्मं । वाघादकरपडादी चक्खुअचक्खूणणोकम्मं ॥७२॥ पंचानां निद्राणां माहिषदधिप्रभृति भवति नोकम्मं । व्याघातकरपटाविश्चक्षुरचक्षुषोनक ॥ पंचनिद्रादर्शनावरणंगळगे माहिषदधिप्रभृतिलशुनखलादिद्रव्यंगळ नोकर्म्मद्रव्यकर्मवकुं । १५ व्याघातहेतुगलप्प पटादिवस्तुगल चक्षुरचक्षुर्द्दर्शनावरणंगळगे नोकद्रव्यकर्मक्कुं ॥ ओही केवल दंसणणोकम्मं ताण णाणभंगोव्व । सादेदरणोकम्मं इट्ठाणिट्ठणपाणादि ॥७३॥ अवधिकेवलदर्शननोक तयोर्ज्ञानभंगवत् । सातेत रनोक इष्टानिष्टान्नपानादि ॥ अवधिमनःपर्यययोः प्रतिघातनिमित्तसंक्लेशकरं यद्ब्राह्यं वस्तु तत् तदावरणयोर्नो कर्मद्रव्यकर्म स्यात् । २० केवलज्ञानावरणस्य नोकर्मद्रव्यकर्म नास्ति क्षायिकत्वेन तत्प्रतिबन्धकसंक्लेशका रिवस्तुनोऽसंभवात् । अवधिमनःपर्यययोः क्षायोपशमिकत्वात् तत् संभवतीत्यर्थः ॥ ७१ ॥ पञ्चनिद्रादर्शनावरणानां माहिषदधिलशुनखलादिद्रव्याणि नोकर्मद्रव्यकर्म भवति । व्याघात हेतु पटादिवस्तूनि चक्षुरचक्षुदर्शनावरणयोनकर्मद्रव्यकर्म भवति ॥७२॥ २५ अवधिज्ञान और मन:पर्ययज्ञानके प्रतिघात में निमित्त संक्लेशपरिणामोंको करनेवाली जो बाह्यवस्तु है वह अवधिज्ञानावरण और मन:पर्ययज्ञानावरणका नोकर्म द्रव्यकर्म हैं । केवलज्ञानावरणका नोकर्म द्रव्यकर्म नहीं है क्योंकि वह क्षायिक है अतः उसके प्रतिबन्धक संक्लेशपरिणामों को करनेवाली वस्तु सम्भव नहीं है । अवधिज्ञान और मन:पर्ययज्ञान क्षायोपशमिक हैं इसलिए उनमें होना सम्भव है ॥ ७१ ॥ पाँच निद्रादर्शनावरणोंका भैंसका दही, लहसुन, खल अदि निद्रा लानेवाले द्रव्य नोकर्म द्रव्यकर्म हैं। चक्षुदर्शनावरण और अचक्षुदर्शनावरणका नोकम चक्षुदर्शन और अचक्षुदर्शनमें व्याघात डालनेवाले परदा आदि होते हैं ॥७२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001325
Book TitleGommatasara Karma kanad Part 1
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNemichandra Siddhant Chakravarti, A N Upadhye, Kailashchandra Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages698
LanguageHindi, Prakrit, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Principle, Karma, P000, & P040
File Size16 MB
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