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________________ जागरण रानी ने कर्तव्य पर, किया अटल स्वीकृत कर पथ त्याग का छोड़े भोग राग - रंग श्रृंगार सभी से रानी ने निज मुख मोड़ा, भोग - पिपासा - जनक वस्त्र ओ' भूषण से नाता तोड़ा । सीधी-सादी- सी गृहिणी बन गई रूपसी क्षण भर में, आन विराजी विलासिता की जगह सादगी - मन्दिर में || - Jain Education International · आज नारियाँ अपने पति को मोहपाश में रखने को, करती क्या - क्या जादू टोने, गिरा गर्त में अपने को । कहाँ पूर्व युग, तारा देखो निष्कलंक पथ पर चलती, स्वयं भोग तज, पति के हित दृढ़ त्याग साधना में ढलती । विश्वास | विलास || आकस्मिक यह लख परिवर्तन राजा हुए चकित - विस्मित, लगे पूछने, रानी से सस्नेह भावना से सस्मित "आज प्रिये, क्या हुआ तुम्हें, यह कैसा अभिनव परिवर्तन ? पुष्प - सुकोमल गात तुम्हारा, यह कैसा कण्टक - जीवन ? - - अलंकार से शून्य देह पर यह मोटी साड़ी कैसी ? कौशल की सम्राज्ञी कैसी बनी दीन दुखिया जैसी ? अगर दोष कुछ मेरा हो तो कर मृदुभाव क्षमा कीजे, और किसी से हुआ निरादर, वह भी शीघ्र बता दीजे । सम्राज्ञी का करे निरादर फिर क्या आशा जीवन की, नाम बताते ही मैं बोटी - बोटी कर दूँगा तन की ।" रानी बोली तन कर - "हाँ, हाँ यही आप कर सकते हैं, रक्षण तो क्या, दीन प्रजा का जीवन ही हर सकते हैं ? For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001309
Book TitleSatya Harischandra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1988
Total Pages198
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Story
File Size8 MB
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