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सत्य हरिश्चन्द्र
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धन्य - धन्य हे भारत माता ! धन्य तुम्हारा गौरव है, हरिश्चन्द्र से लाल दिये, जिनका यश, अक्षय वैभव है। सत्य • धर्म पर अपना सब कुछ, सुख-वैभव-उत्सर्ग किया, प्राण - प्रकम्पक कष्ट सहे, पर कभी नहीं उन्मार्ग लिया।
हार मानकर कौशिक ने, जब राज्य पुनः देना चाहा, दत्त - दान अग्राह्य मान कर, नहीं स्वयं लेना चाहा ! चाहा क्या, बस लिया न बिल्कुल सत्य-धर्म पर अचल रहे, स्फटिक रत्न के तुल्य सर्वदा, अपने व्रत में अमल रहे !
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